Book Title: Jainpad Sagar 01
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 195
________________ गुरुस्तुतिपद-संग्रह। १७४ ॥१॥ गुरुका काम ज्ञान देना वा धर्मदेशना करना है। आप धर्ममें लीन हो, कर्म अरीको हरना है ।हा कलिकाल प्रभाव आज गुरु,जगहँ जगहँ लड़ मरना है। अधर्म करके पापका भार आप सिर धरना है ।। विन विद्या बल इन बातोंका छाननवाला कोई नहीं ॥ जैनधर्मको०॥२॥ ज्ञानदानके बदलेमैं श्रुत, पाठन पठन निवार दिया। पढ़े जो कोई उसे पुस्तक देना. इनकार किया। जहां जिनागमकी चर्चा तह, विन कारण तकरार किया। भोले भाले जहां देखे तहां,रहनेका इखत्यार किया ॥ शिवमगमें ऐसे ठगकों गुरु माननवाला कोई नहीं॥ जैन धर्मको०॥३॥ धर्मदेशनाके बदले,लौकीक कथा कों करते हैं। बडे ढोंगसे आप निज, विषय विथाको हरते हैं । सरस मनोहर असन वसन सय, नासन नहीं विसरते हैं। बडे सूर हैं जगतसों, जरा नहीं वे डरते हैं ॥वचन जिनेश्वर सत्य तदपि, पहिचाननवाला कोई नहीं ॥ जैनधर्मको०॥४॥ .

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