Book Title: Jainpad Sagar 01
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
www
१४४ जैनपदसागर पथमभागदुंदुभि बजे वीन वंशी सजें, एकसी परत आनदघनकी भरन । आज०॥३॥ इंद्र हर्षित हिये नेत्र अंजुलि किए.तृपति होत न पिये रूप अमृत झरन । दास भूधर भने सुदिन देखे वनै, कहि थके लोक लख जीभन सकै वरन । आज०॥४॥ . ५३ बधाई-आदिनाथजीकी । राग-पांज ॥ . .माई आज आनंद है या नगरी ॥ माई ॥ टेक ॥ गजगमनी शशिवदनी तरुनी, मंगल
गावति हैं सगरी ॥माई आज ॥१॥ नाभि ‘शयघर पुत्र भयो है, किये हैं अजाचक जाच
करी ॥ माई आज०॥२॥ द्यानत धन्य कूख मरुदेवी,सुरसेवत जाके पगरी माई आज०॥३॥
६। राग-परज । 'माई आज आनंद कछु कहे न बने । टेक॥ नाभिराय मरुदेवी-नंदन, व्याह उछाय त्रिलोक भने । माई आज०॥१॥ सीस मुकुट गल माल अनूपम, भूषन बसतनं को बरनै ।.माई आज ॥३॥..गृह सुखकार रतनमय कीलो.

Page Navigation
1 ... 206 207 208 209 210 211 212 213