Book Title: Jainpad Sagar 01
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 207
________________ ......बधाई-संग्रह । १८७ हा हा हू हू नारदतुंवर, गावत श्रुति सुखदाई ।। चलि देखरी०॥२॥ तांडव नृत्य नटत हरिनट तिन, नख नख सुरी नचाई। किन्नर करधर बीन बजावत, हगमनहर छवि छाई ॥ चल देखरी ॥३॥ दौल तासु प्रभुकी महिमा सुर,-गुरुप कहिय न जाई. । जाके जन्मसमय नरकनमैं, नारिकि साता पाई ।। चलि देखरी माई०॥४॥ : ४। वघाई-आदिनाथ भगवानकी राग-पंचम। . .. आज गिरिराजके शिखर सुंदर सखी, होतः है अतुल कौतुक महा मनहरन ॥ टेक ॥ ना. भिके नंदको जगतके चंदको, लेगये इंद्र मिलि. जन्ममंगल करन ॥ आज० ॥१॥ हाथ हाथ: .न.घरे सुरन कंचन घरे, छीरसागर भरे नीर निरमल बरन । सहस अरु आठ गिन, एकही बार जिन, सीस सुर ईशके करन लागे ढरन ...आज०॥२॥ नचत सुरसुंदरी रहस रससों भरी, गीत गा३ अरी देहि ताली करन । देव . घड़े कलश । २ अड़ी हुई–पास पास खड़ी हुई।.. ; -

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