Book Title: Jainpad Sagar 01
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 211
________________ .. :: .बधाई-संग्रह ! १९१ महासेनसुत चंद्रकुँवरंजू, राज लह्यो सुख साज ॥वधाई॥१॥ सनमुख नृत्यकारिनी नाचे,होत मृदंग अवाज । भेट करत नृप देश देशके, पूरत सबके काज ॥ वधाई० ॥२॥ सिंहासनपै सोहत ऐसो,ज्यों शशि-नखत-समाजानीतिनिपुन परजाको पालक, वुधजनको सिरताज॥ वधाई॥ १. राग सोरठा । : आज तो बधाई होनाभिद्वार आजकोटका। मरुदेवी माताके उरमैं, जनमे रिषभ कुमार ॥ आज० ॥१॥सची इंद्र सुर सवमिलि आये, नाचत है सुखकार। हरषिहरषि पुरके नरनारी, गावत मँगलाचार ॥ आज तो० ॥२॥ ऐसो बालक भयो जुताकै,गुनको नाही पार । तनमन बचत वंदत बुधजन, है भवतारनहार आज०॥ . : ..(१२) . भई आज बंधाई निरखत श्रीजिनराई॥ 'भई टेक.॥ गया अमंगल पाया मंगल, न्म सुफल.भया भाई ॥ भई०॥॥.तीनलोक की सारी संपति, अर सारी ठकुराई। इनकी कृपा

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