Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 207
________________ अतः उसे लाल रोशनी दिखायी पडती है जिसे वह खतरे का चिन्ह मानकर सुनीता को अपने वक्ष से चिपका लेता है। यह विभ्रम सुनीता के प्रति हरि प्रसन्न की प्रच्छन वासना व्यंजित करता है। कल्याणी को कभी-कभी मृत आत्माएँ देखने का सन्देह होता है। उसे गुसलखाने में से फुस-फुस की आवाज आती है। उसी स्थान पर किसी स्त्री-पुरुष की बहस सुनायी पडती है। फिर उसे लगता है जैसे स्त्री की हत्या कर दी गयी हो। कल्याणी को हत्यारा कमरे के आर-पार जाता दिखायी पड़ता है, आदि-आदि। जैनेन्द्र जी इस विभ्रम को विश्वसनीय बनाने के लिए स्त्री-पुरुष की आकृति और वेशभूषा भी देते हैं। सम्मोहन तथा मुक्त-आसंग सम्मोहन की दशा में व्यक्ति अत्यधिक निर्देशनीय हो जाता है। वह निर्देशों को तुरन्त मानकर मन के अनेक गुप्त भेद कह देता है तथा उनके उपचार के लिए दिये गये निर्देश को भी मान लेता है। वह व्यक्ति सम्मोहन से प्रभावित होकर अधिक निर्देशनीय बनता है जो अपने विचारों को हीन तथा दूसरे के विचारों को श्रेष्ठ समझता है। ऐसे लोगों में मनोबल की कमी होती है। मुक्त-आसंग में पात्र अपने मन को खुला छोड़ देता है तथा विचारों, भावनाओं तथा इच्छाओं को निर्बाध रूप से बिना किसी भ्रम, भय तथा संकोच के प्रकट करता है। जैनेद्र के कथा साहित्य में प्रायः एक पात्र मनोविश्लेषक का कार्य करता है तथा उसके सम्मुख एक असामान्य पात्र रहता है। वह अपने मनोविश्लेषण के निर्देशों से सम्मोहित की सी अवस्था में अपनी 48 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ - 230 49 जैनेन्द्र कुमार - कल्याणी. पृष्ठ - 76 50 जैनेन्द्र कुमार - कल्याणी, पृष्ठ -78 51 Alffed Adler-Understanding Human Nature, Page - 52 [1771

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