Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 210
________________ संघर्ष जैनेन्द्र ने अपने पात्रों के चरित्र-चित्रण के लिए संघर्ष का भरपूर प्रयोग किया है। इनके पात्रों का संघर्ष समाज से या सामाजिक समस्याओं से नहीं वरन् निज से है। अतः संघर्ष विशेषतः नारियों में तीव्रतम पाया जाता है। वे हृदय की दो विरोधी वृत्तियों के द्वन्द्व से टूट जाती हैं। यह द्वन्द्व इदम् और अहं के मध्य है। इदं मूल प्रवृत्तियों का कोष तथा मनः ऊर्जा मूल स्रोत है। बाह्य जगत से सम्बन्ध न होने के कारण यह अनुभव के द्वारा परिमार्जित नहीं होता। किन्तु अहं के द्वारा इस पर नियन्त्रण रखा जा सकता है x x x x xi| इदं अत्यन्त शक्शिाली होता है तथा सुख के उद्देश्य से परिचालित होता है, अहम्, इदं और पराहम् के बीच सामंजस्य स्थापित करता रहता है, किन्तु यदि अहम, इदं या परमहम् के सम्मुख आत्म समर्पण कर देता है तो व्यक्तित्व में असामन्जस्य का बोलबाला हो जाता है। जैनेन्द्र के अधिकांश नारी पात्र व्यक्तित्व के असामंजस्य से पीड़ित हैं।, उनका चेतन मन उन्हें सतीत्व की ओर खींचता है और अचेतन मन उन्हें प्रेमियों की ओर ले जाता है और दोनों का निर्वाह करने के प्रयास में उनका जीवन दयनीय हो जाता है। एक ओर उनके मन में परम्परागत संस्कार हैं जिनसे चाहकर भी वे मुक्ति नहीं पातीं और दूसरी ओर प्रच्छन्न वासनाएँ हैं जो तृप्ति के लिए निरन्तर छटपटाती हैं तथा नारियों के सभी नैतिक-सामाजिक कर्तव्यों को लाँघ जाती है। सुखदा इसका जीता-जागता उदाहरण है। वह हरीश की ओर भी झुकती है तथा लाल की ओर भी। वह पति का अंकुश नहीं मानती और स्पष्ट कहनी है x x x x x मैं सभा जाऊँगी, तुम रोक नहीं 61 कैल्विन एस० हाल - फ्रायड मनोविज्ञान प्रेवेशिका, पृष्ठ-12 62 कैल्विन एस० हाल - फ्रायड : मनोविज्ञान प्रवेशिका, पृष्ठ-23 63 कैल्विन एस० हाल - फ्रायड : मनोविज्ञान प्रवेशिका, पृष्ठ-24 [180]

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