Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 218
________________ अथवा उनके मानस के भँवर से कथन लहरों के धक्कों से आगे बढते हों। पात्र कई बार स्वयं प्रश्न करता है तथा स्वयं उत्तर देता है अथवा कथन में एक साथ कई प्रश्न करके झडी लगा देता है। जैनेन्द्र संवादों को स्फुट, अधखुले तथा अपूर्ण रखकर उनमें अपार व्यंजना भर देते हैं । कई स्थलों पर अन्तराल तथा मौन से भी कार्य लिया गया है । मौन के रूप में अन्तराल को संवादों में लिया जाय या नहीं इस पर मतभेद हो सकता है, परन्तु उन्हें संवादों का एक भाग मानना उचित है, क्योंकि वह दो पात्रों के कथोपकथन के बीच आए हैं। पात्र की स्थिति वहाँ है मात्र वह बोलता नहीं, कभी-कभी मौन भी मुखर होता है। ऐसा मौन भी उद्धरण चिन्हों में दिया गया है । जिससे लक्षित होता है कि लेखक उसे संवाद में सम्मिलित करना चाहता है। कछ संवाद ऐसे भी हैं जिनमें सन्दर्भ की प्रतीति के विशेष में अर्थ गाम्भीर्य आ जाता है। कहीं-कहीं ये संवाद अत्यन्त असाधारण हैं परन्तु सन्दर्भ से जुड़कर चमत्कारिक अर्थ देते हैं। सुनीता, सत्या, श्रीकान्त तथा हरि प्रसन्न सिनेमा हाल में हैं। हरिप्रसन्न पानी लेकर आता है, श्रीकान्त को पानी की आवश्यकता नहीं है। पानी सत्या और सुनीता को चाहिए क्योंकि वह प्यासी हैं। सुनीता कहती है----हरि बाबू पानी लाए हो? लेकिन सर्दी में क्या पानी से खातिर होगी? सत्या पानी पी लेती है, पर नाक-भौं सिकोड़कर कहती है, हां जीजी! पर जीजी, पानी कुछ खारा था, मानो वह पानी सत्या के अनुकूल नहीं और केवल सुनीता के लिए हो। हरि प्रसन्न सुनीता की उपेक्षा से किंचित् खिन्न होकर पूछता है तो इसे मैं फेक दूँ? फेंक क्यों दोगे? सुनीता हाथ बढ़ाकर बोली लाओ मुझे दे दो, नहीं-नहीं मैं भूल गयी थी, मुझे प्यास है। मानो सुनीता को एकाएक याद आ जाता हो कि पानी तिरस्कार योग्य न हो जाय और उसे प्यास है । आरंभ में, सर्दी में पानी से क्या खातिर होगी, का सन्दर्भ सुनीता की स्थिति से जुड़ा 88 जैनेन्द्र कुमार-सुनीता, पृष्ठ-79-80 [188]

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