Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 244
________________ में अभिव्यंजना हुई है। वह नियतिवाद कहीं भोगवादी दर्शन की अभिव्यक्ति करता है तो कहीं भाग्यवाद के पर्याय के रूप में आया है। इस प्रकार जैनेन्द्र कुमार के कथा साहित्य की दार्शनिक चेतना परम्परानुमोदित भारतीय है। जैनेन्द्र कुमार ने मनोवैज्ञानिक चेतना को भी अपने कथा साहित्य में निरूपित किया। उन्होंने पुरुष पात्रों की मनोवैज्ञानिक चेतना और नारी पात्रों की मनोवैज्ञानिक चेतना की विशद् व्याख्या की। युग-चेतना कथाकार का एक ऐसा अस्त्र है जो कथा साहित्य के भावपक्ष और प्रतिपाद्य में ही परिवर्तन नहीं लाता अपितु कथा साहित्य के प्रस्तुतीकरण-शिल्प में भी नवीन परिवर्तन लाता है। प्रत्येक युग की परिस्थितियाँ और युग चेतना अपने विगत से भिन्न हुआ करती है, जिसकी अभिव्यक्ति का माध्यम पूर्णतः मौलिक और अभिनव होता है। प्रेमचन्द और जैनेन्द्र कुमार के कथा साहित्य का अवलोकन करने पर यह अन्तर स्पष्ट हो जाता है। कथा साहित्य तो यथार्थ की अनुकृति है तथा युग चेतना का अनुगामी है, इससे कथा साहित्य अछूता नहीं रह सकता। जैनेन्द्र कुमार का कथा साहित्य स्वयं इसका प्रमाण है। 'परख', 'सुखदा', 'त्यागपत्र', 'कल्याणी' 'अनन्तर' तथा 'सुनीता', शिल्पगत भावगत एवं विचारगत परिवर्तनशील युगचेतना के प्रमाण हैं। उनकी भाव शैली उत्तरोत्तर यथार्थवादी, चित्रात्मक तथा नाटकीय होती गई। यही कारण है कि जैनेन्द्र कुमार के प्रस्तुतीकरण-शिल्प में मौलिक परिवर्तन होता रहा है। भाषा-शैली में मुहावरों, लोकोक्तियों, सूक्तियों तथा देशज शब्दों के प्रयोग से अद्भुत अभिव्यंजनात्मक शक्ति आती गयी। युग चेतना का वाणी विधान करना जैनेन्द्र कुमार का साहित्यिक धर्म था। युग परिवर्तनशील है। फलतः जैनेन्द्र कुमार के साहित्य में भाव परिवर्तित होते गये। साथ ही साथ वे बिना किसी पूर्व योजना के [213]

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