Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 230
________________ को प्रस्तुत करते हैं। दुविधात्मक स्थिति में पड़कर सत्यधन सोचता है कि वह अपने जीवन की धुरी को किस दिशा में गतिशील रखे। 'मुक्तिबोध' मे राजनैतिक नेता के मस्तिष्क में चल रहे अन्तर्द्वन्द्व में अनेक प्रश्न हैं। सत्यधन के मन में अनेक तर्क-वितर्क के प्रश्न फूट पडे हैं। यह क्या हुआ ?.......मैं कैसे सामने पड गया ? बिहारी क्या सोचेंगे? .........आखिर मैंने क्या कहा ? यही कि वह मुझे स्वीकार करती या नहीं ?....तो क्या मैं उसे अपनाऊँगा ? क्या अपनाना होगा? संवादों तक में प्रश्नों की आवृत्ति है। .......कट्टो ने पूछा –जाऊँ ? 'जाओ ।' 'जाऊँ' "जाओ' 'जाऊँ 'जाओ' | वह चल गई तुलनात्मक शैली जैनेन्द्र अपनी शैली के शिल्प-निर्माण में तुलना का पर्याप्त सहारा लेते हैं। यह तुलना सम भी है तथा विषम भी। आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के शब्दों में, “जीवन के दो पहलुओं को पहले विरोध में रखकर फिर विरोध के भीतर से एक समाधान निकालने की शैली उनके सभी उपन्यासों में मिलती है। 14 जैनेन्द्र जी की इस द्वन्द्वात्मक स्थिति के कारण ही उनके कथा साहित्य में नाटकीय 123. जेनेन्द्र कुमार - परख, पृष्ठ -47 124 जैनेन्द्र कुमार - परख. पृष्ठ -43 [200]

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