Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 239
________________ पात्र के कथन की अपेक्षा छोटे-छोटे संवादों में उददेश्य प्रतिफलन अधिक कलात्मक है। 'कल्याणी' इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है। उसके छोटे-छोटे संवादों में सूत्रात्मक रूप में बहुता सा दर्शन भर दिया गया है। जैनेन्द्र जी ने अनेक विचारों तथा दर्शन को अपने कथा साहित्य में समाहित किया है। उन्होंने इसके प्रतिफलन के लिए प्रायः सभी प्रमुख तत्वों, वस्तु, चरित्र-संवाद आदि का सहारा लिया है। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में प्रचलित परम्परा का निर्वाह न होकर बल्कि नवीन परिपाटी का सृजन हुआ है और यही परिपाटी शैली का मूलाधार है। इसी के माध्यम से हम रचनाकार के मनोलोक में प्रवृष्टि हो जाते हैं और उसके स्वभाव, संस्कार एवं अन्तः प्रेरणाओं की जड़ को पकड़ पाते हैं। इसी के अन्तर्गत मन के चेतन, अचेतन व अवचेतन में मानसिक प्रभाव सन्निहित होते हैं। जैनेन्द्र जी के साहित्य में जो बारीकी आई है, उसका आधार उनके मूलग्राही विचार ही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने युग के विचारों का बड़ी सार्थकता से दोहन किया है। [209]

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