Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 237
________________ प्रतिनिधि है वह आततायी है और मृणाल जैसी स्त्रियों की दशा के लिए उत्तरदायी है। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में पत्रों का बहुत अधिक प्रयोग है। कहीं-कहीं पत्रों ने 'उपन्यासकार' के विविध उद्देश्यों में से कतिपय की अभिव्यक्ति की है। सत्यधन को लिखे पत्र में घरेलू बातों के अतिरिक्त भगवद्दयाल बहुत से विचारात्मक सूत्र भी देते हैं। इसमें सामाजिक दायित्वों का उल्लेख है। जैनेन्द्र जी के बाद के साहित्य में विवाह के बारे में पत्रों का ऐसा उत्तरदायित्व पूर्ण व्यवहार दृष्टिगत नहीं, यद्यपि उस पत्र में 'सुनीता' तथा 'त्यागपत्र' · में विवाह को सामाजिक तथा निभाने योग्य संस्था माना गया है। जैनेन्द्र ने अपने बहुत से सिद्धान्तों को अपने पात्रों के माध्यम से व्यक्त किया हैं। जैनेन्द्र ने कथावस्तु की अपेक्षा चरित्रों का अधिक उपयोग किया है। जैनेन्द्र के चरित्र प्रतीकात्मक है। वे सिद्धान्त के किसी न किसी पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं। सत्यधन में व्यावहारिकता का, बिहारी में आदर्श का, कट्टो में त्यागमय प्रेम का, हरि प्रसन्न में हिंसा का, श्रीकान्त में अहिंसा का, सुनीता में आदर्श सती का, प्रमोद में सामाजिक व्यवस्था का, मृणाल में सामाजिक विडम्वनाओं के अत्याचार को सहने वाली नारी का प्रतीकत्व है। जैनेन्द्र उद्देश्य प्रतिफलन के लिए पात्र की मनः स्थिति अन्तः या बाह्य का प्रयोग करते हैं। जितेन जानता है कि मोहिनी कैद है। उसने सख्त हिदायत दी थी कि किसी को पास जाने की जरूरत नहीं और न ही रियायत करने की। किन्तु उसका मन उद्विग्न रहा। वह जीप में बैठकर जमुना की ओर चल देता है। जैनेन्द्र इस मनः स्थिति पर अपना दर्शन जमा देते हैं कि प्रकृति पुरुष की सहायिका है। वह विधि-निषेध, अच्छे-बुरे से परे है। 171 जनन्द्र कुमार - विवर्त. पृष्ठ – 200 [207]

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