Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 241
________________ उपसंहार प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में जैनेन्द्र कुमार की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक तथा शिल्पगत चेतना के परिप्रेक्ष्य में युगीन परिस्थितियों का अध्ययन किया गया है, साथ ही युगीन परिवेश की अभिव्यक्ति का क्रमिक प्रतिपाद्य जैनेन्द्र कुमार के कथा साहित्य में दिखलाते हुए युगानुसार परिवर्तित सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और शिल्पगत चेतना का प्रभाव उनके कथा साहित्य में लक्षित किया गया है। इन युग चेतना के संवाहक स्वरों को जैनेन्द्र कुमार के जीवन और व्यक्तित्य तथा साहित्य से सम्बद्ध करके विवेचित किया गया है। जैनेन्द्र कुमार के कथा साहित्य में सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और शिल्पगत युग चेतना की किस सीमा तक अभिव्यक्ति हुई है, यही इस शोध-प्रबन्ध का उद्देश्य रहा है। साहित्य में युग भावनाओं की अभिव्यंजना युग-चेतना कहलाती है। चेतना स्वयं को और अपने आस-पास के वातावरण को समझने तथा उसका मूल्यांकन करने की शक्ति है। साहित्य युग चेतना से जुड़ा हुआ होता है। वह अपनी उपजीव्य सामग्री युग से ग्रहण करता है और कथाकार या साहित्यकार उस युग-बोध को सम्प्रेषित कर एक शाश्वत रसात्मक सृष्टि करता है। जैनेन्द्र कुमार का कथा-साहित्य इसका ज्वलन्त उदाहरण है। जैनेन्द्र कुमार का जन्म ऐसे समय में हुआ जबकि उन्होंने भारत परतन्त्र रूप में देखा। उनका जीवन एक ओर पृष्ठभूमि से सम्बद्ध दिखायी पड़ता है तथा दूसरी ओर परम्पराओं से भी निकट का सम्बन्ध जोड़े हुए था। ऐसी ही पृष्ठभूमि में उन्होंने युग चेतना से संपृक्त होकर सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक नीरस सिद्धान्तों को साहित्य का अंग [210]

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