Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 235
________________ मुल्तवी मुस्तहक, आजिज‍ मुतफर्रक जैसे अंग्रेजी तथा उर्दू के शब्द भी आए हैं जिन्हें साधरणातः उस भाषा का ज्ञान न रखने वाला समझ नहीं सकता । अंग्रेजी के शब्द कहीं रोमन लिपि बिना हिन्दी अर्थ कोष्ठक में दिये 154 लिये गए है, कही उनके रोमन लिपि के रूप के साथ हिन्दी पर्याय भी दे दिया गया है । 155 भाषा के शब्द प्रयोगों में एकरूपता का अभाव है। उनका रूप कहीं एक प्रकार है कहीं दूसरे प्रकार का । मोहर 6 मुहरराण नाराजगी 158 नाराजी 159 गिरस्ती 180 गिरस्ती 100 गिरिस्ती गिरस्तिन* गृहस्थ गृहस्थी गृहिस्थिनी ढारस" ढाढस " कुछ ऐसे ही रूप हैं। डॉ रामचन्द्र तिवारी जैनेन्द्र की भाषा के विषय में निम्नलिखित विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं। 165 जैनेन्द्र का सोचने का अपना ढंग हैं अपना व्यक्तित्व है। उनकी भाषा शैली उनके इस निजीपन का प्रतीक है। उनके गद्य में चिन्तन और चिन्तन प्रक्रिया दोनों ही साकार हुए हैं। इस दृष्टि से समूचे हिन्दी साहित्य में उनका गद्य अप्रतिम है । 188 150 जेनेन्द्र कुमार कल्याणी, पृष्ठ-51 151 जेनेन्द्र कुमार 152 जनन्द्र कुमार 153 जंनन्द्र कुमार 154 जैनेन्द्र कुमार 155 जैनेन्द्र कुमार 156 जैनेन्द्र कुमार परख, पृष्ठ-7 कल्याणी, पृष्ठ-117 विवर्त, पृष्ठ 141 मुक्तिबोध, पृष्ठ 47 परख, पृष्ठ-60 परख, पृष्ठ-113 - 161 - 157 जैनेन्द्र कुमार - परख, पृष्ठ-7 158 जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र, पृष्ठ-28 159 जैनेन्द्र कुमार त्यागपत्र, पृष्ठ-65 160 जैनेन्द्र कुमार सुखदा, पृष्ठ-50 161 जैनेन्द्र कुमार त्यागपत्र, पृष्ठ-42 162 जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ-12 163 जैनेन्द्र कुमार सुखदा, पृष्ठ-26 164 जेनेन्द्र कुमार सुखदा, पृष्ठ-129 165 जैनेन्द्र कुमार सुनीता, पृष्ठ- 101 सुखदा, पृष्ठ-1 विवर्त, पृष्ठ-58 166 जैनेन्द्र कुमार 167 जैनेन्द्र कुमार 168 डॉ० रामचन्द्र तिवारी - हिन्दी का गद्य साहित्य, पृष्ठ - 445 [205]

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