Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 231
________________ आकर्षण की योजना हो गयी है। जीवन में घटित होने वाले दो विरोधी आदर्शों को उन्होंने दो पुरुष पात्रों के माध्यम से व्यक्त किया है और नारी - पात्रों द्वारा वे चुनाव का कार्य लेते हैं। इस प्रकार जैनेन्द्र जी के उपन्यास और कहानियों में नारी पात्र तो एक ही है पर पुरुष - पात्र प्राय: एक या दो होते है, एक नारी पात्र और दो पुरुष - पात्रों का संयोग अत्यन्त नाटकीय स्थिति है। इस शैली को जैनेन्द्र जी ने बहुत अपनाया है। समर्थ - भाषा शैली के समान जैनेन्द्र की भाषा अत्यन्त समर्थ है। वे विचारों के ही नहीं लेखनी के भी धनी हैं। उनकी भाषा भावानुमार्मिक है। वे पात्रों के मन के अन्तर्द्वन्दों, भीतर घुमड़ते भावों को अभिव्यक्ति देने में पूर्ण समर्थ हैं। मिस्टर सहाय के मन में अबूझ विस्मय भाव है जिसे भाषा ने सफलता से व्यक्त किया है'. मेरे लिए वह अनुभव था। लेकिन वह सब तत्व दर्शन जाने मेरे भीतर कहाँ सिमट कर रह गया था। मुझे विस्मय हुआ जब देखा कि मेरा मन भर आ रहा है ।....... विधान निर्मम होता है, विधाता भी निर्मम होता है । उसके तले हम सबको भी ममताहीन औरं दृढ़ होकर चलना है...... यह सारा तर्कनिष्ठ भाव किसी तरह भी मेरे भीतर सिर नहीं उठा सका और मैं अवसन्न रह गया, यह अनुभव करके कि.... [125 जैनेन्द्र के भाषा की रूपायन शक्ति भी दार्शनिक है। जैनेन्द्र अपनी भाषा-सामर्थ्य से किसी भी भाव, दृश्य, वस्तु या स्थिति को हमारे सम्मुख सहज ही साकार कर देते हैं। कट्टो की आँखों का चित्रण इस प्रकार है......' ... आँखे आंसुओं से खूब धोई गई हैं और फूल आई हैं जैसे फूली - फली (?) धुली कमल की दो लाल पंखुड़ियाँ हों, 125. जैनेन्द्र कुमार मुक्तिबोध, पृष्ठ - 16-17 [201]

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