Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 223
________________ बैठकर बोली | 104 जैनेन्द्र के कथा साहित्य में केवल बाह्य चित्रण ही नहीं मिलता, बल्कि वह बाह्य चित्रण को काटकर तुरन्त पात्र के चिन्तन-मनन या क्रिया-कलाप पर कूद जाना चाहता है। कश्मीर का सुन्दर वातावरण है जिसकी शोभा को चित्रित करने के लिए कई पृष्ठ रंगे जा सकते थे, परन्तु लेखक जैसे शीघ्रता में है, कश्मीर के दिन आनन्द से बीते, कहीं एक जगह नहीं रहना था- कश्मीर की सुषमा बिखरी थी । आज यहाँ, कल वहाँ, इसमें पता ही नहीं चला कि आनन्द नहीं है, जैसे लहरें हों और हम तैर रहे हों । सब था, लेकिन नीचे क्या मुझमें ग्रन्थि थी ? 106 यह उद्धरण लेखक की प्रवृत्तियों का परिचायक है। वातावरण के संक्षिप्त चित्रण की प्रवृत्ति के बावजूद जैनेन्द्र कहीं-कहीं इन चित्रों को पूर्ण बनाने हेतु प्रयत्नशील दिखाई पडते हैं। ऐसा वातावरण - चित्रण भी बहुत नहीं हुआ है, केवल लेखक ने उसे सांगोपांग बनाने की चेष्टा की | जहाँ पूर्व चर्चित चित्रण रूप-रेखात्मक है, वहीं इनमें मांसलता भरने की चेष्टा है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है, जहाँ कथाकार कोठरी का क्षेत्रफल तक देता मिलता है- 'कोठरी बारह वर्ग फीट से बड़ी न होगी। बाहर थोड़ी खुली जगह ही जहाँ धोती, अँगोछे सूख रहे थे। कमरे में एक ओर कपडे चिने थे। उनके पास ही एक-दो बक्स थे। उनके ऊपर बाँस टाँगकर कुछ काम के कपड़े लटका दिए गये थे। बुआ की पीठ की तरफ दो-एक टीन के आधे कनस्तर, दो चार हँड़िया और कुछ मिट्टी के सकोरे और टीन के डिब्बे थे । वहाँ पास कुछ पीतल, एल्यूमीनियम के बर्तन रखे थे और एक टीन की बाल्टी और पानी का घड़ा भरा रखा था, एक कोने में कोयले की बोरी आधी झुकी हुई खड़ी थी । ' 108 104 जेनेन्द्र कुमार - व्यतीत, पृष्ठ-15 105 वही, पृष्ठ- 82 106. जैनेन्द्र कुमार त्यागपत्र, पृष्ठ-54 [193]

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