Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 224
________________ लेखक ने शायद ही कोठरी में होने वाली किसी निजी वस्तु को छोडा हो, यह पृथक् बात है कि उस ढंग के मुहल्ले की कोठरी में उतनी ही चीजें हुआ करती थीं। इस प्रकार बाह्य वातावरण के चित्रण को भी जहाँ तक सम्भव बन पडा है, पूर्ण बनाने का प्रयत्न किया गया है, यथा-'विचित्र मुहल्ला था। वहॉ दिन शायद ही कभी होता हो। दिन में रात होती थी और रात में क्या होता पता नही। सटी-सटी कोठरियाँ थीं। वे कोठरियाँ ही दूकाने थीं और रात मे वे ही ख्वाबगाह। किसी पर सस्ती विसाहत की चीजें हैं तो किसी पर ताजी साग-भाजी और चुचके फल रखे हैं। कहीं नाई है, कहीं हाथ की मशीन लिए दर्जी बैठा अमरीकन तर्ज के कपड़े सी रहा है। यहाँ आसमान भी इकबाली बन जाता है और काल की गिनती रातों के हिसाब से होती है। tor प्रकृति-चित्रण जैनेन्द्र के कथा साहित्य में वातावरण के रूप में प्रकृति-चित्रण का बहुत कम उपयोग है। इस सम्बन्ध में डॉ० रामरतन भटनागर का मत द्रष्टव्य है-'उनमें प्राकृतिक चित्रपटी का अभाव है। उनके अधिकांश उपन्यासों में हमें किसी प्राकृतिक दृश्य की पृष्ठिभूमि नहीं मिलती। वह तंग गलियों एवं नगर के गली-कूचों से बाहर नहीं जा पाते । 108 कथाकार प्रकृति-चित्रण को अपने शिल्प का आधार बनाकर कथानक और पात्रों का परिवेशात्मक औचित्य प्रस्तुत करता है। इसी प्रकार का एक चित्र 'जयवर्धन' में उपलब्ध है। जय और इला समुद्र तट पर मिलते हैं। पृष्ठभूमि में वातावरण का चित्रण इस प्रकार है 107 वही, पृष्ठ-56 108 डॉ० रामरतन भटनागर - जैनेन्द्र - साहित्य और समीक्षा, पृष्ठ -46 [194]

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