Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 217
________________ ये कथोपकथन पात्रों के अन्तः सम्बन्धों तथा परिचय की प्रगाढता के अनुसार भिन्न हैं । प्रमोद और बुआ के वार्तालाप, प्रमोद - कोयले वाले अथवा मृणाल - कोयले वाले के वार्तालाप से भिन्न हैं। 'जयवर्धन' के संवादों में चाहे वह इला के साथ है या हूस्टन के साथ अथवा आचार्य के साथ, उसकी दार्शनिक प्रकृति का परिचय मिलता है। जैनेन्द्र की कहानियों में तथा उपन्यासों के संवादों में विचार - प्रतिपादन, तर्क-वितर्क तथा चिन्तन की प्रधानता है जैनेन्द्र के पात्र प्रायः प्रतिभासम्पन्न सुशिक्षित तथा अधीत हैं। 'मुक्तिबोध' में भी नीलिमा पिता-पुत्र के सम्बन्धों तथा दायित्व को लेकर अपना कथन इतना दीर्घ कर लेती है कि सहाय को कहना पड़ता है-खासा लेक्चर था दर्शन से भरे यह संवाद अत्यन्त असाधारण तथा रहस्यमय लगते हैं x x X X X..... अच्छा हुआ आप आ गए। सुनिये न अब कुछ मेरा है न उनका है । सब जगन्नाथ जी का है । जगन्नाथ के दरबार में अनबन क्या ? किंचित् हँसकर जितेन ने कहा--- - नहीं, मरना किसको नहीं है? क्या सबके मरने का पाप हमेशा भगवान को ही उठाते रहना होगा? तुम्हारे उस भगवान की हमें भी कभी सहायता करनी चाहिए- --- 187 - दर्शन के सिद्धान्तों की ऊहा हरि प्रसन्न, मृणाल, कल्याणी, जयवर्धन, सहाय और प्रसाद के कथनों में निरन्तर पायी जाती है। प्रमोद के दीर्घ स्वगत भाषणों में भी चिन्तन को बोझिलता है। इसी चिन्तन प्रधानता को व्यक्त करने के लिए संवादों में गतिरोध का समावेश किया गया है। संवाद बीच-बीच में टूटे हुए हैं तथा एक-एक कर आगे बढ़ते है । मानो पात्र सोच-सोच कर बोल रहे हों 85. जैनेन्द्र कुमार - मुक्तिबोध, पृष्ठ-136 86. जैनेन्द्र कुमार - कल्याणी, पृष्ठ-32 87. जैनेन्द्र कुमार - विवर्त, पृष्ठ-29 [187]

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