Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 211
________________ सकते। तुरन्त उसके संस्कार गतिशील होते हैं और वह कह उठती है-'मैं साथ तो हूँ, पर पदाधिकारी न बनाएँ और कभी उनसे पूछना भी नहीं x x x x x 185 _जैनेन्द्र के नारी-पात्र पुरुष-पात्रों की अपेक्षा अधिक आकर्षक हैं। जैनेन्द्र नारी मनोविज्ञान की जानकारी का अच्छा परिचय देते हैं। कल्याणी मान्यता चाहती है, सुखदा में स्त्री की स्वामित्व की इच्छा का तत्व है । वह चाहती है उसका पति उसे रोके-टोके और जब ऐसा प्रतिरोध नहीं हो पाता तो झुंझलाकर उनके विरूद्ध हो जाती है। सुखदा के लिए समस्या यही है कि उसका पति 'देवता या एकदम गऊ है। जैनेन्द्र के पात्र मानसिक अधिक हैं और मांसल कम, क्योंकि वह नहीं चाहते कि उनके पात्र डेढ़-डेढ़ दो-दो मन के हों। उनके पात्रों के अन्तरंग को जानने के लिए अनुभाव सर्वोत्तम साधन है। जैनेन्द्र पात्रों का संक्षिप्त रूपाकार चित्रण करते हैं। प्रायः वे पात्र का बाहरी हुलिया या वेशभूषा का विस्तृत चित्र नहीं देते । ऐसे स्थानों पर जैनेन्द्र का चयन प्रशंसनीय है। वे चित्र में कम रेखाएं ही नहीं चुनते हैं अपितु ऐसी रेखाएं चुनते हैं, जो व्यंजक हों। सुनीता की सुन्दरता वे इतनी-सी बात कहकर व्यंजित कर देते हैं-'एक बॉह, गोरी गोरी बाँह' ! सत्या का हमें इतना ही परिचय मिलता है x x x x x 'सुनीता की छोटी बहिन है--आजकल कालेज में इण्टरमीडिएट के दूसरे वर्ष में पढ़ती है। 64 जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ -26 65 वही, पृष्ठ - 28 66 जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र, पृष्ठ-22 67 जैनेन्द्र कुमार - साहित्य का श्रेय और प्रेय, पृष्ठ - 157 68 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ -51 69 वही, पृष्ठ -64 [181]

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