Book Title: Jainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Author(s): Ajay Pratap Sinh
Publisher: Ilahabad University

View full book text
Previous | Next

Page 214
________________ मानवीय संस्कृति और सभ्यता के विकास के साथ-साथ भाषा जन्य अक्षमता का प्रहार होता रहा । शिल्प की दृष्टि से आज के सफल उपन्यासों और कहानियों में जो वार्तालाप प्राप्त होता है वह कथानक को सहज-स्वाभाविक गति प्रदान कर चरित्र-चित्रण में योगदान देता है । जैनेन्द्र कुमार के कथासाहित्य में विविध प्रकार के कथोपकथनों का शिल्पगत प्रयोग हुआ है । अतएव उनके उपन्यासों में स्वाभाविक, मनोवैज्ञानिक, सुन्दर, सरस, सजीव, वैयक्तिक, चरित्र - व्यजक कथोपकथन उपलब्ध होते हैं। वह निरन्तर प्रयत्न करते हैं कि उनके कथोपकथनों में नवीनता, मौलिकता तथा सुन्दरता की सृष्टि हो । फलतः उनके कथासाहित्य में शिल्पगत सौन्दर्य दृष्टिगत होता है । जैनेन्द्र के 'परख', 'सुनीता', 'त्यागपत्र', 'कल्याणी' तथा ‘जयवर्धन' उपन्यासों में कथोपकथन का पर्याप्त और कलात्मक प्रयोग परिलक्षित होता है। जैनेन्द्र जी ने चरित्र-चित्रण की दृष्टि से कथोपकथन का भरपूर प्रयोग किया है। एक आलोचक का तो यहाँ तक मत है कि जैनेन्द्र ने कथोपकथन से वातावरण निर्माण का कार्य भी लिया है । " यद्यपि उन्होंने इसका एक भी उदाहरण नहीं दिया । जैनेन्द्र ने वातावरण निर्माण के लिए कथोपकथन का प्रयोग प्रायः नहीं किया है। यद्यपि जैनेन्द्र के कथासाहित्य में कथानक स्वल्प है तथापि उसके विकास के लिए संवादों का प्रयोग किया गया है । 'त्यागपत्र' का अधिकांश कथा - विकास संवादों से हुआ है। लेखक प्रमोद को मृणाल के सामने रख देता है, तथा उनके पारस्परिक वार्तालाप से कथा विकसित हो जाती है । निम्नलिखित संवाद मात्र सूचनात्मक 75 डॉ० घनश्याम मधुप - हिन्दी लघु उपन्यास, पृष्ठ-132 [184]

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253