Book Title: Jainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan Author(s): Kamleshkumar Jain Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 8
________________ সব অভ্যাস : ঈশ-লক্ষােিদ্ধ অং সলঙ্গায় हैं, निश्चित नहीं कहा जा सकता। फिर भी उपमा आदि के महत्वपूर्ण विवेचन से प्रस्तुत अन्य को मौलिकता अक्षुण्ण है। प्रस्तुत ग्रन्थ मे मंगलाचरण करने के पश्चात् सर्वप्रथम अलंकारों की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है । पुन उपमा, रूपक, दीपक, रोष, अनुमास, भतिशय, विशेष, आक्षेप, जातिव्यतिरेक, रसिक, पर्याय, यषासंख्य, समाहित, विरोध, संशय, विभावना, भाव, अर्थान्तरन्यास, परिकर सहोक्ति, कर्जा, अपहति, प्रेमासिशय (उर्स, परिवृत्त, द्रव्योतर, क्रियोत्तर, गुणोत्तर), बहुश्लेष, व्यपदेश, स्तुति, समज्योति, अप्रस्तुतप्रशसा, अनुमान, आदर्श, उत्प्रेक्षा, ससिखि, आशीष, उपमारूपक, निदर्शना, उपेक्षावयव, उद्भिद्, वलित, अमेदवलित, और यमक इन ४० अलंकारो का नामोल्लेख किया है । तत्पश्चात् इन्ही अलंकारों के सभेद लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत कर विषय-विवेचन किया गया है। अन्यकार ने उपमा के १७ भेद किए हैं, जो निम्न प्रकार हैं-प्रतिवस्तूपमा, गुणकलिता, उपमा, असमा-उपमा, मालोपमा, विगुणस्पा-उपमा, सम्पूर्णा-उपमा, गूढा-अपमा, निन्दाप्रशसोपमा, लल्लिप्सा-उपमा, निन्दोपमा, मसिशयिता-उपमा, अतिमिलितोपमा, विकल्पिकोपमा (एकत्र विकल्पिकोपमा और बहुधा विकल्पिकोपमा)। इसमे किसी-किसी अलकार का मात्र उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। वाग्भट-प्रथम वाग्भटाल कार के यशस्वी प्रणेता वाग्भट-प्रथम और आचार्य हेमचन्द्र ये दोनो समकालीन आचार्य होते हुए भी काल की दृष्टि से वाग्भट-प्रथम हेमचन्द्र के पूर्ववर्ती हैं, किन्तु वाग्भट-प्रथम की अपेक्षा भाचार्य हेमचन्द्र को अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है, इसलिए कुछ विद्वानो ने आचार्य हेमचन्द्र को पूर्व में स्थान दिया है और वाग्भट-प्रथम को पश्चात् मे२ । काव्यानुशासन के रचयिता १ अलंकारदप्पण-भूमिका । ___-मरूधर केशरी मुनिश्री मिश्रीमल जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ चतुर्थ ___ खण्ड, पृ. ४२६ २ द्रष्टव्य-सस्कृत साहित्य का इतिहास-अनु. मगलदेव शास्त्री, पृ०४६ । , अलंकार धारणा विकास और विश्लेषणः पृ. २२४ एवं पृ. २२९ ।Page Navigation
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