Book Title: Jainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ जैनाचार्यो का बलकारशास्त्र में योगदान तृतीय उल्लास मे विप्रलम्भ शृङ्गार के चार भेद--- पूर्वानुराग, मानात्मा, प्रवास और करुण, काम की दस अवस्था - अभिलाष, चिन्ता, स्मृति, युजकीर्तन, उद्योग, प्रलाप, उन्माद, व्याधि, जडत्व और मरण, व गाराभास, परस्त्रीसंगमोपाय मान के तीन भेद-गुरू, मध्य और लघु, मानिनी नायिका को मनाने के छ उपाय - साम, दान, भेद, उपेक्षा, प्रणति और प्रथम विभ्रम आदि का विवेचन किया गया है । पुन पति के लिए अनुराग पूर्वक तथा अनपूर्वक प्रयुक्त नामो का उ लेव किया गया है । अन्त मे प्रवास विषयक वर्णन है । ४८ चतुर्थ उल्लास मे सर्वप्रथम विप्रलम्भ के चतुर्थ भेद करुण का सलक्षणोदाहरण विवेचन किया गया है । पुन प्रतिवेश्मा, नटी, चेटो, कार, घात्री, शिल्पिनी, बाला और तपस्विनी आदि नायिका की सखियो ( सहायिकाओ) के नाम, उनके गुण तथा कौतुक, मण्डन, रक्षा, उपालम्भ, प्रसादन, सहयोग और विरह मे आश्वासन आदि सखियों के कार्यों का उल्लेख, हास्य, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत और शान्तरस का सभेद स्वरूप, उदाहरण तथा नके अनुभाव आदि का वर्णन विरोधी रस समावेश और शृगार, हास्य, करुण, रौद्र, भयानक तथा अदभुत रस मे पाये जाने वाले भावो का पृथकपृथक् निर्देश किया गया है । तत्पश्चात् कौशिकी, आरभटी, सास्वती और भारती इन चार रीतियो का निरूपण किया गया है । इसी क्रम में काव्य दूषण, प्रत्यनीक- रस, विरस, दु सन्धानरस, नीरसकाव्य, दुष्टपात्र आदि का वर्णन किया गया है । सिद्धिचन्द्रगणि सिद्धिचन्द्रगण अपने समय के महान टीकाकार और साहित्यकार थे। ये तापगच्छीय उपाध्याय भानुचन्द्रगणि के शिष्य थे । भानुचन्द्रमणि और सिद्धिचन्द्रगणि को मुगल बादशाह अकबर के दरबार में समान रूप से सम्मान प्राप्त था | सिद्धिचन्द्रगणि शतावधानी थे । उनके प्रयोग देखकर बादशाह अकबर ने 'खुशफहम' ( तीक्ष्ण बुद्धि ) की मानप्रद उपाधि प्रदान की थी, ' जिसकी पुष्टि उनके द्वारा रचित प्रत्येक ग्रन्थ की अन्तिम प्रशस्ति से होती १ जैन साहित्यनो सक्षिप्त इतिहास, पृ० ५५४ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59