Book Title: Jainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 42
________________ ..KRI RS.. RELATEST के बार-काय नायक प्रदीय मेव के स्वरूप में व्यंजना को मिलायका मलेश नहीं किया है, जिससे उनका यह काम AR मे मावत' है। मन त जिवषय सदोष है। विनयचनमूरि ने सुबाहित सम्बर मार्च को कान्य स्वीकार किया है । इसके ऐसा माहीत होना है की गुणों को अत्यधिक महत्व देने में प्रति विमति के बार में गुणों की कदापि उप्रेक्षा नहीं की माली हैजीवास्तविकता के सिमट है। विजयवर्णी ने काव्य-स्वरूप.प्रस्तुत करते हुए विवाह कि-ब-रशिक, प्रासहित, रीति, वृत्ति, शम्या और रस से युक्त प्रपा मसंकार और पाक सहित अवार्य-रचना जिसमें उत्तम हो वह काव्य है। प्रस्तुत स्वरूप में विजयबारी ने बुति, सम्या और पाक का प्रथम बार समाल किया है। इसके पश्चात् आचार्य अजितसेन का समय माता है, उनके समन अनेक वाचायों के साथस्वरूप विद्यमान थे। बत उनके मस्तिष्क में एक ऐसा स्वरूप बनाने का संकल्प था, जिसमें सभी प्रमुख बाचार्यों के प्रमुख सिमान्तो का समावेश हो, कोई भी तत्व उससे अछूता न रह जाए । इसी आकांक्षा को साकार रूप देते हुए उन्होंने काव्य-स्वरूप निरुपण करते हुए लिखा है कि-सुख चाहने वाला अनेक शाली का शाता और प्रतिभाशाली कवि शब्दालंकारों और अर्यालंकारों से युक्त भृङ्गारादि नौ रसों के सहित, वैदर्भी इत्यादि रीतियों के सम्बक प्रयोग से सुन्दर, व्यंग्यादि अर्थों से समन्वित, अतिक्टु इत्यादि दोषो से शून्य, प्रसाद बोर माधुर्यादि गुणों से युक्त, नायक के चरित वर्णन से सम्पुक्त, उमय-लोक हितकारी एवं सुस्पष्ट काम ही उत्तम काव्य होता है। यदि प्रस्तुत काय | १ अन्वायो सगुणी कामम् ।-काव्यशिक्षा, ११ २ भदोष समुणो रीतितिशबारसाग्वितः । सालंकार' सपाकाच शबापरचमोत्तम ।।-अमारार्णवचन्द्रिका ३. शब्दार्थालंकृतीब, नवरसकलित रीतिभावानियमन । व्यमावर्ष विदोष गुमागमकलित नेतृसमर्थनासम्.. लोको बन्दोपकारि सटमिह सतुतात् कायमस्य सुखानी मालामाजीयाः कविरतुनमति: पुण्यवानुम् ।।

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