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सृवीय समायरस-विचार
बरेन्द्रप्रसूरि का विवेचन हेमवत से प्रभावित है।' विषयों के अनुसार रोद्र पी प्रकार का होता है-मात्सर्य बोरसे उत्पन्न । इसके अतिरिक्त उन्होने बरस के विभावादि का भी उल्लेख किया है। जिन विभाषादि से परिपुष्ट ऋोष को बरस मानते हैं। बाग्मट-द्वितीय ने रौद्र के विभाव मावि का उल्लेख हेमचन्द्र की तरह किया है। पपसुन्दरमणि का रोदरस विवेचन वाग्भट-प्रथम से प्रभाक्ति है। इस प्रकार रोबरस का सभी बाचायों का विवेचन एक ही सरणी पर आधारित है। वीर-रस
इसका स्थायिभाव उत्साह है। भरत ने उत्साह नामक स्थायिभाव को उत्तम प्रकृतिस्थ माना है। उनके अनुसार वीररस की उत्पत्ति असमोह, अध्यवसाय, नीति, विनय, अत्यधिक पराक्रम, शक्ति, प्रताप और प्रभाव मावि विभावो से होती है।
जैनाचार्य आर्यरक्षित का बीररस विवेचन धार्मिक दृष्टिकोण को लिए हुए है, उनके अनुसार परित्याग और तपाचरण करने पर सपा यात्रु का विनाश होने पर बननुशय (अहकार-रहित) धृति और पराक्रम पूर्ण चिह्नो (बनुभागों) से युक्त वीररस कहलाता है। यथा-को राज्य का त्याग करके दीक्षित होता है तथा काम, क्रोध-रूप महाशत्रु पक्ष का विनाश करता है, वह महावीर कहलाता है। वाग्भट-प्रथम ने उत्साह नामक स्थायिभाव वाले वीररस के नायक को समस्त श्लाघनीय गुणों से युक्त माना है तथा इसके तीन भेद किए हैंधमवीर, युद्धवीर और दानवीर । हेमचन्द्र के अनुसार नीति आदि विभाव, स्थिरता मादि अनुभाव बोर ति मादि व्याभिचारिभावों से युक्त उत्साह नामक स्थायिभाब बाला वीररस है। इसके धर्मवीर, दानवीर और युद्धधीर ये तीन भेद है। रामचन्द्र-गुणचन्द्र पराक्रम, बल, न्याय, मन और तत्वविनिश्चय से वीररस की उत्पत्ति मानते हैं, इसका अभिनय धैर्य, रोमाच और दान से
१. मलकारमहोदषि, ३।१६ । २. भूमारार्णवधिका ८३ । ३. मलकान्ताभि, ५॥१०५। ४. कानुशासन PHET: ५५ । ५ बरसाहिशुभारपण, ॥३२॥ ६.नाट्यशास्त्र । A. अनुमोबाएन, प्रथम भाग, पृ. ८३३॥ ८. वाग्भटासकार, २
६ काव्यानुशासन