Book Title: Jainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 41
________________ जैव का अकास्में निदान एक उपाय काव्य की और संकेत करता है। स्वरूप पर व्यापक दृष्टि से विचार करने वाले संभवतः माचार्य क है। उन्होंने काव्य-स्वरूप निरूपण करते हुए लिखा है कि-दोषरहित, गुण-संहित और कहीं-कहीं स्पष्ट ) चर्मकार रहित (साधारणत अलंकार सहित ) और वर्ष के समूह का नाम काव्य है । इस स्वरूप में मम्मट मे शब्द और वर्थषी' नादिविशेषण प्रस्तुत कर निश्चय ही प्रशंसनीय कार्य किया है । पिपरवर्ती जाचार्य विश्वनाथ और पण्डितराज जगन्नाथ ने उनके की कड़ी वालोचना की है तथापि यह उतना त्रुटिपूर्ण नहीं है, जितना उसे अनाया गया है । विश्वनाथ और पण्डितराव जगन्नाथ आदि स्वतंत्र शिकायों को छोड़कर शेष आकायों के काव्य स्वरूपों पर प्राथ मम्मट का प्रभाव लक्षित होता है। समस्त नाचार्य प्राथ सम्मट के अनुगामी हैं । जैनाचार्य वाग्भट-प्रथम ने काव्य स्वरूप पर विचार करते हुए लिखा है कि-सुन्दर शब्द मीर अर्थों से युक्त, गुण और अलंकारों से सूषित, स्पष्ट रीति और रसों से युक्त काव्य कहलाता है । इस स्वरूप में मम्मट की अपेक्षा सामान्यत निम्न तीन विशेष बातें दिखलाई देती हैं al १ वाग्भट - प्रथम द्वारा स्पष्ट रीति और रस का समावेश । २ काव्य मे अलंकार की स्थिति अनिवार्य मानना । ३ अदोषी विशेषण का प्रभाव । - हेमचन्द्राचार्य ने काव्य-स्वरूप निरूपण करते हुए लिखा है कि--दोषरहित, गुण और अलंकार सहित ( कही-कहीं अलंकार रहित भी) शब्द और अर्थ काव्य है । मम्मटोस्थिति और हेमचन्द्रसम्मत काव्य स्वरूप मे पूर्णत साम्य है । नरेन्द्रप्रसूरि मे मम्मट सम्मत काव्य-स्वरूप में कुछ अपनी बात का समावेश करते हुए लिखा है कि--दोष-रहित, गुण, अलंकार और व्यंजनासहित काव्य कहलाता है। इस स्वरूप मे 'सभ्यंजनस्तथा' यह विशेषण दिया २. तददोषी शब्दाची सगुणावनलकती पुन क्वापि । २ साधुशब्दार्थसन्दर्भ गुणालंकार भूषितम् । स्फुटरीतिरसमेतं काव्यं .. #1 प्रकरण ११४ । मटाकार ११२५ ३. मदोषी सगुणी सालकारी च शब्दायी काव्यम् । काव्यानुशासन, ११११ # ४. निर्दोषः सगुण साकृत सम्म जनस्तथा । चारच विपाचया हि विगाहते ॥ अकारमहोदधि, १११३ ॥

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