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अनाचाबी का बलकारमा
योगदान
"भामह के समर्थक है। कथा
कथा में सामान्यत कविकल्पना प्रसूत वर्णन किया जाता है। भामह के अनुसार इसकी रचना सस्कत, प्राकृत और अपभ्रश में होती है, इसमें बल और अपरवध नामक छन्दों तथा उच्छवासो का अभाव होता है। इसके पतिरिक्त उसमे नायक अपना चरित स्वय नहीं कहता है, अपितु किसी अन्य पति से कहलाता है, क्योकि कूलीन व्यक्ति अपने गुण स्वय कैसे कहेगा। वण्डी कला और मास्यायिका में कोई मौलिक भेव न मानकर एक ही जाति के दो नाम मानते हैं। नमके अनुसार कथा की रचना समो भाषामो तथा सस्कृत में भी होती है। अद्भुत अर्थों वाली बृहत्कथा भूनभाषा मे है। मानन्दवर्षन ने काव्य के भेदो मे प रकथा, खण्डकथा और सकलकवा का उल्लेख किया है। अग्निपुराणकार ने कथा के स्वरूप में कुछ नवीन बातों का समावेश किया है। यथा-कवि संक्षेप मे कुछ पद्यों द्वारा अपने वश की प्रशंसा करता है, मुख्य कथा के अवतरण हेतु भवान्तर कपा का संयोजन करता है तथा विमान परिच्छेदों मे न होकर लम्बको मे होता है। ___ जैनाचार्य हेमचन्द्र ने कया का स्वरूप निरूपम करते हुए लिखा है कि जिसमें धीर प्रशान्त नायक हो तथा जो सर्व-भाषाओ में निवड हो ऐसी गब अथवा पद्यमयी रचना कथा कहलाती है। इस स्वरूप मे हेमचन्द ने दण्डी की
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१ तत्र नायिकात्यातस्ववृत्तान्तामाव्यर्षसिनी सोच्छवासा कम्पकापहारसमा
गमाभ्युदयभाषिता मित्राविमुखाल्यातवृत्तान्ता अन्तरातराप्रविरलपवन्या पास्यायिका।
--काव्यानुशासन-बाग्भट, पृ० १५॥ २ काव्यालकार, ०२८-२९।। ३ तत् कयास्यायिकत्येका जाति संझाइयांकिता। -काबाद, ११२। ४ वही, ११३८ ५ बन्यालोक, ३७ वृत्ति। १. अग्नि पुराण का काव्यशास्त्रीय भाग, १११५-१६ । ७. धीरवातनामा बेन पना सर्वमापा कया।