Book Title: Jainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 29
________________ जैनाचार्यों का बलकारशास्त्र में योगदान जैसा कि प्रारम्भ में कहा गया है कि सिद्धिचन्द्रगणि एक महान् टीकाकार और साहित्यकार थे। इन्हे व्याकरण-न्याय और साहित्य-शास्त्र का ठोस ज्ञान था। जिसकी पुष्टि उनके द्वारा रचे गये साहित्य से होती है। सूक्ति-रलाकर इनके गहन अध्ययन और पाण्डित्य का द्योतक है । उनके द्वारा विरचित अद्यावधि ज्ञात ग्रन्धो की सख्या १६ है, जिनके नाम निम्न प्रकार हैं-कादम्बरी उत्तरा टीका, शोभनस्तुति टीका, वृक्षप्रस्तावोक्ति-रत्नाकर, भानुचन्द्र-चरित, भक्तामरस्तोत्र-वृत्ति, तर्कभाषा-टोका, जिनशतक-टीका, वासवदत्ता-टीका, काव्यप्रकाश-खण्डन, अनेकार्थोपसर्ग-वृत्ति, धातुमजरी, आख्यातवाद-टीका, प्राकृतसुभाषित संग्रह, सूक्तिरत्नाकर, मगलवाद, सप्तस्मरणवृत्ति, लेखलिखनपद्धति और सक्षिप्त कादम्बरी कथानक' । इसके अतिरिक्त काव्यप्रकाश खण्डन में काव्य-प्रकाश पर लिखी गई गुरु नामक बृहद् टीका का भी उल्लेख मिलता है। काव्यप्रकाशखण्डन ___ आचार्य मम्मट विरचित काव्यप्रकाश का सीधा सीधा अर्थ लगाना ही दुष्कर है, पुन उसका खण्डन करना तो और भी अतिदुष्कर है। किन्तु प्राचार्य सिद्धिचन्द्रगणि ने काव्यप्रकाश का खण्डन कर अपनी प्रखर बुद्धि का मेरुदण्ड स्थापित किया है। इन्होने काव्यप्रकाश के उन्ही स्थलों का खण्डन किया है, जिनमे उनकी असहमति थी। प्रस्तुत रचना के कारणो पर प्रकाश डालते हुए मुनि जिनविजय ने लिखा है कि-'महाकवि मम्मट ने काव्य-रचना विषयक जो विस्तृत विवेचन अपने विशद् ग्रन्थ मे किया है, उसमे से किसी लक्षण, किसी उदाहरण, किसी प्रतिपादन एव किसी निरसन सम्बन्धी उल्लेख को सिद्धिचन्द्रगणि ने ठीक नही माना है और इसलिये उन्होने अपने मन्तब्य को व्यक्त करने के लिए प्रस्तुत रचना का निर्माण किया । अत इस ग्रन्थ के अध्ययन से उनकी नवीन मान्यताओ पर प्रकाश पडता है, जिनमे वैराग्य की झलक दृष्टिगोचर होती है। काव्यप्रकाश-खण्डन काव्यप्रकाश की तरह दस उल्लासो म विभक्त है। इसमे प्रत्येक उल्लास के विषय का उसी क्रम मे खण्डन किया गया है, जिस १ भानुचन्द्रगणिचरित-इन्ट्रोडक्शन, पृ० ७१-७४ । २ अस्मत्कृतबृहट्टीकातोमवसेय (पृ. ३) गुरुनाम्ना बृहट्टीकात , पृ० ६४ । ३ काव्यप्रकाश-खण्डन-किंचित् प्रास्ताविक, पृ० ३।

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