Book Title: Jainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 26
________________ प्रथम अध्याय - जैन-आलेकारिक और अनारशास्त्र ४७ प्रश्नीय माध्यपदनिका, परमतव्यवच्छेवस्थाहावाप्रिंशिका, प्रमाणसुन्दर, सारस्वतरूपमाला, सुन्दरप्रकाशशब्दार्णच, हायन-सुन्दर, षड्भाषामितनेमिस्तव, परमंगलिकास्तोत्र, भारतीस्तोत्र, भविष्यदत्तचरित और शान-चन्द्रोदय माटक मादि । डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ने इनको केवल दो ही रचनावों का उल्लेख किया है। भविष्यदत्त चरित और रायमल्लाभ्युदय महाकाव्य ।' जबकि पं. नाथूराम प्रेमी और डॉ गुलाबचन्द्र चौधरी ने इनकी अन्य कृतियो का भी सप्रमाण उल्लेख किया है । अकबरसाहि शृगार दर्पण प्रस्तुत अलकारशास्त्र विषयक ग्रन्थ मुगल बादशाह अकबर की प्रशंसा में रचा गया है । इसके प्रत्येक उल्लास के अन्त में अकबर प्रशस्ति-पद्यों की रचना की गई है । अकबरसाहिशृङ्गार-दर्पण की तुलना दशस्यक और नाम्य-दर्पण से की जा सकती है, क्योकि इसमे नाटयशास्त्रीय तत्वो का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है । चार उल्लासो में विभाजित इस ग्रन्थ में कुल ३४५ पब हैं। प्रथम उल्लास मे कवि ने सर्वप्रथम आठ पदों मे अकबर के पूर्वजों तथा अकबर का विरुदगान किया है। पुन मवरस, स्थायीभाव गणना, रस-सक्षण तथा व्यभिचारी भावो और सात्विक भावों की संख्या का निर्देश किया है। शृगाररस स्वरूप, उसके भेद-प्रभेदो का सोदाहरण निरूपण, नायक-स्वरूप, सलक्षणोदाहरण नायक-भेद, नर्मसचिव-स्वरूप, उसके पीठमर्द, विट और विदूषक इन तीन भेदो का निरूपण, नायिका स्वरूप, उसके भेद-प्रभेद आदि का सोदाहरण वर्णन किया गया है। द्वितीय उल्लास मे परकीया के दो भेद बतलाये गये हैं-कन्या और उढा। पुन परवधू द्वारा नायक के अनेक प्रकार से दर्शनों का अनुभव करने का उल्लेख है। तत्पश्चात् अम्यवीयकन्या स्वरूप, मुग्धा ( नामिकर) चेष्टा, उद्धतमन्मथा, दुखसंस्था, पांगना तथा स्वाधीनपतिका, उल्का, वासकसज्जिका अभिसन्धिता, विप्रसम्बा, बाण्डिता, अभिसारिका एवं प्रोषितपतिका इन बाठ नायिका मेदों के सोबाहरण समग दिए है। इसी क्रम में उत्तम, मध्यम और बषम नायिकाओं का सलक्षणोदाहरम निरूपम किया गया है। १. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, खण्ड ४, पृ. । २. ब्रटम्य-जैन साहित्य और इतिहास, पृ. ३६५ ३ प्रधब्य-जैन साहित्य का या एतिहास, भाग ६, पृ.६७ ।

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