Book Title: Jainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 22
________________ प्रथम सम्मान न-भावकारिक और बारसास्न ४ (V) सलकारमान, (५) कायमण्डन, (१) शृङ्गारमण्डन, (७) संगीतमण्डन, (८) उपसर्ग-मण्डन, (९) सारस्वतमण्डन, (१०) कविकल्पन म'। ঈলক্ষামন্তল प्रस्तुत कृति मण्डन मन्त्री की अलकार विषयक रचना है। इसमें उन्होंने अलंकार-शास्त्रीय विषयो का समावेश किया है, जो नाम से ही स्पष्ट है। असंकार-मण्डन पांच परिच्छेदों में विभाजित है। इसके प्रथम परिच्छेद में काव्य का लक्षण, उसके प्रकार और रीतियों का निरूपण है। द्वितीय परिच्छेद मे दोषो का वर्णन है। तृतीय परिच्छेद में गुणों का स्वरूप-दर्शन है। चतुर्थ परिच्छेद मे रसो का निदर्शन है । पचम परिच्छेद मे अलकारो का विवरण है। भावदेवसूरि आचार्य भावदेवसूरि प्रतिभा सम्पन्न विद्वान थे। उनका समय ईसा की चौदहवी शताब्दी का उत्तरार्ध और पन्द्रहवी शताब्दी का पूर्वाध प्रतीत होता है, क्योंकि इन्होंने पाश्र्वनाथ-चरित की रचना वि०सं० १४१२ मे श्रीपत्तन नामक नगर में की थी, जिसका उल्लेख पार्श्वनाथ-चरित की प्रशस्ति में किया गया है। भावदेवसूरि के गुरु का नाम जिनदेवसूरि था। ये कालिकाचार्य सन्तानीय खडिल्लगच्छ की परम्परा के आचार्य थे। आचार्य भावदेवसूरि ने अलंकार विषयक काव्यालकारसारस ग्रह के अतिरिक्त और कितने तथा कौन-कौन से अन्थो की रचना की है, यह स्पष्ट नही कहा जा सकता है। क्योकि इन प्रन्थो मे परस्पर एक दूसरे का कही भी १ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन पन्थ, 'मंत्रीमण्डन और उनका गौरवशाली वश', पृ. १३३ । २ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग १, पृ० ११८ । ३ तेषा विनयविनयी बहु भावदेव सूरि प्रसन्न जिनदेवगुरुप्रसादात् । श्रीपत्तनास्यनगरे रवि विश्ववर्षे पावप्रमोश्चरितरत्नमिव ततान ।। __ -पार्श्वनाथ-चरित, प्रशस्ति, १४ ।। ५. मासीत् स्वामिसुधर्मसन्ततिमयो देवेन्द्रवन्धक्रम., श्रीमान् कानिकसूरिद्रतयुग मामाभिराम पुरा। जीयादेष समन्वये जिनपति-प्रासाद तुगाल, भाजिष्ण, निरागारनिधि' खण्डिल्लगच्छाम्बुषि ।। वही, प्रशस्ति, ४.

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