Book Title: Jainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan Author(s): Kamleshkumar Jain Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 7
________________ जैनाचार्यों का अलकारशास्त्र में योगदान मगलाचरण' में लेखक ने श्रत देवता को नमस्कार किया है, अत इतना ही कहा जा सकता है कि इसकी रचना किसी जैनाचार्य ने की होगी। श्री अगरचन्द जी नाहटा के एक लेख से ज्ञात होता है कि जैसलमेर के बृहर मान भण्डार की ताडपत्रीय प्रति मे 'अलंकार दप्पण' के अतिरिक्त काव्यादर्श और उद्भटालकार लघु-वृत्ति भी लिखी है, काव्यादर्श के अन्त मे प्रति का लेखनकाल सम्बत् ११६१ भाद्रपदे' लिखा है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत रचना सम्बत् ११६१ के पूर्व की होगी। उक्त श्रीयुत नाहटा जी ने भंवरलाल नाहटा के अलकारदप्पण के अनुवाद के प्रारम्भ में (भूमिका स्वरूप) प्रस्तुत ग्रन्थ के अलकार सम्बन्धी विवरण को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण काल ८वी से ११वी शताब्दी माना है। जैनाचार्य प्रणीत संस्कृत भाषा म निबद्ध प्राय सभी अलकारशास्त्र सम्वत् ११६१ के पश्चात् रचे गये है। अत. पूर्ववर्ती होने से 'अलकारदप्पण' की महत्ता स्वयसिद्व है। अलकार-दप्पण: प्रस्तुत कृति प्राकृत भाषा मे निबद्ध एक मात्र कृति है । इसमे केवल १३४ गाथाएं है। जिनका सीधा सम्बन्ध अलकागे से है। इसमें कुछ ऐसे नवीन अलकारो का समावेश किया गया है, जो इसके पूर्व रचित ग्रन्थों में उपलब्ध नही हैं । इसीलिए इसकी महत्ता पर प्रकाश डालते हुए श्री अगरचन्द नाहटा ने लिखा है कि इस प्रथ मे निरूपित रसिक, प्रेमातिशय, द्रव्योत्तर, क्रियोत्तर, गुणोत्तर, उपमारूपक, उत्प्रेक्षायमक अलकार अन्य लक्षण ग्रन्थो में प्राप्त नहीं है । ये अलकार नवीन निर्मित हैं, या किसी प्राचीन अलकारशास्त्र का अनुसरण १ सुदरपअ विण्णाण विमलालकाररेहिअसरीर । सुहदेविअ च कव्व च पणविअ पवरवण्णड्ढ ॥१॥ २ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, पृ० ६६ । ३ 'प्राकृत भाषा का एक मात्र आलकारिक ग्रन्थ अलंकार दर्पण' ___-गुरूदेव श्रीरत्नमुनि स्मृति मन्थ, पृ० ३९४-३६८ । ४. 'प्राकृत भाषा का एक मात्र अलंकारशास्त्र अलंकारदप्पण' -मरुधरकेशरी मुनिश्री मिश्रीमलजी महाराज अभिनन्दन पन्थ में प्रकाशित, चतुर्थ खण्ड, पृ० ४२६ ।Page Navigation
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