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प्रथम अध्याय : जैन-आलंकारिक और अलंकार
साधना अत्यन्त विशाल और व्यापक है । जीवन को संस्कृत संबद्धित और संचालित करने वाले जितने पहलू हैं, उन सब पर उन्होंने अपनी अधिकारपूर्ण लेखनी चलाई है । उनकी साहित्य सेवा को देखकर विद्वानों ने उन्हें 'कलिकासर्वज्ञ' जैसी उपाधि से विभूषित किया है' ।
आचार्य हेमचन्द्र का जन्म विक्रम सं० १९४५ में कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि को घुघुका नामक नगर (गुजरात) के मोढ वश में हुआ था । उनका बामावस्था का नाम चागदेव था तथा उनके पिता का नाम चाचिन और माता का नाम पाहिणी देवी था' । 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' के अनुसार बालक चांगदेव का धीरे-धीरे विकास होने लगा । उसे बचपन से ही धर्म गुरुओ के संपर्क में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । अत उन्होंने आठ वर्ष की अल्पायु मे ही अपने समय के प्रसिद्ध आचार्य देवचन्द्र से ली थी । दीक्षा के पश्चात् उनका नाम सोमचन्द्र रखा गया
दीक्षा ग्रहण कर
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सोमचन्द्र ने थोड़े ही समय में तर्कसाहित्य आदि सभी विद्याओं मे अनन्य प्रवीणता प्राप्त कर ली। तत्पश्चात् उन्होने अपने गुरु के साथ विभिन्न स्थानो मे भ्रमण किया और अपने शास्त्रीय एव व्यावहारिक ज्ञान मे काफी वृद्धि की" । विक्रम सवत् ११६६ मे २१ वर्ष की अल्पायु में ही मुनि सोमचन्द्र को उनके गुरु ने आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करके हेमचन्द्र नाम दिया। जिसके कारण उन्होंने
१ हिस्ट्री आफ इडियन लिटरेचर ( एम० विन्टरनित्स ) वाल्यूम सेकेण्ड, पृ० २८२ ।
२ (क) संस्कृत शास्त्रों का इतिहास - बलदेव उपाध्याय, पृ० २३४ । (ख) अर्दाष्टमनामनि देशे धुन्धुकाभिधाने नगरे श्रीमन्मोढवंशे चाचिगनामा व्यवहारी सतीजनमतल्लिका जिनशासनशासनदेवीव तत्सधर्मचारिणी शरीरिणीय श्री पाहिणीनाम्नी चामुण्डागोत्रजाया आद्याक्षरेणांकित - नामा तयो पुत्रश्चागदेवोऽभूत् । - प्रबधचिन्तामणिहेमसूरिचरित्र, पृ० ८३ ।
३ प्रबन्धचिन्तामणि - हेमसूरिचरित्र, पृ० ८३ ।
४ प्रभावकचरित- हेमचन्द्रसूरिचरित, श्लोक ३४ ।
५ काव्यानुशासन - हेमचन्द्र, प्रो० पारीख की अंग्रजी प्रस्तावना, पृ० २६६ ६ कुमारपाल प्रतिबोष - हेमचन्द्रजन्मादिवर्णन, पृ० २१ ।