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अष्टम परिच्छेद
इस तरें की सवारी में आज चढ़ना ।
९. शयन - शय्या का नियम करे सो खाट, चौकी, पाट, तखत, कुरसी, पालकी, सुखासन प्रमुख जितने रखने होवें, सो मन में धार लेवे ।
१०. विलेपन का नियम करे-सो भोग के वास्ते केसर, चंदन, चोवा, अतर, फुलेल, गुलावादिक जो वस्तु अंग में लगानी होवे, तिस का नाम मन में धार लेवे; तथा अंगलहणा भी इसी में रख लेना । इस में इतना विशेष है कि, देवपूजा, देवदर्शन, इत्यादि धर्म करनी करते समय हाथ में धूप, अगरबत्ती लेनी पड़े, तथा अपने मस्तक में तिलक करना पड़े, तिस का श्रावक को नियम नहीं है ।
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११. ब्रह्मचर्य का नियम करे – सो दिन में अरु रात्रि में इतनी बार स्वस्त्री से मैथुन सेवना, उपरांत स्वस्त्री से भी नहीं सेवना; अरु हास्य, विनोद, आलिंगन, चुंबनादिक करने का मांगा रक्खे |
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१२. दिशा का नियम करे - अमुक दिशा में आज मैने इतने कोस उपरांत नही जाना। इसमें आदेश, उपदेश, माणस भेजना, चिट्टी लिखनी एसर्व नियम आ गये । जैसे पाल सके, तैसे नियम करे ।
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१३. स्नान का नियम करे सो आज के दिन तैल मर्दनपूर्वक तथा बिन मर्दनपूर्वक कितनी वक्त स्नान करना, सो धार लेवे | इसमें देवपूजा के वास्ते नियम से अधिक स्नान