________________
दशम परिच्छेद
३२५
घृत का मेरु करे, अष्ट मांगलिक नैवैद्यादि स्नात्रमहोत्सव ढोवे । बहुत जाति के चन्दन, केसर, पुष्प, अंवरादि लावे, सकल श्रावक समुदाय को एकत्र करे, गीत नृत्यादि आडम्बर रचावे, दुकूलादि महाध्वज देवे । प्रौढाडम्बर से प्रभावनादि, निरन्तर तथा पर्व - दिन में करे । नेकर निरन्तर अथवा पर्वदिन में भी न कर सके, तो भी वर्ष में एक वार तो अवश्य करे। स्नात्र महोरस में स्वधनकुलप्रतिष्ठादि के अनुसार सर्वशक्ति से करे, अर्थात् जिनमत का महाउद्योत करे ।
तथा देवद्रव्य की वृद्धि के वास्ते प्रतिवर्ष मालोदूधट्टन करे, इन्द्रमाला तथा और माला का महोत्सव भी यथाशक्ति करे। ऐसे ही पहरावणी नवीन धोती, विचित्र प्रकार का चन्दुआ, अंगणा, दीपक, तेल, उत्तम केसर, चन्दन, चरास, कस्तूरी प्रमुख चेत्योपयोगी वस्तु, प्रतिवर्ष यथाशक्ति देवे |
तथा सुंदर आंगी, पत्रभंगी, सर्वांगामरण, पुष्पगृह, कदलीगृह, पुनली, पानी के यन्त्रादि की रचना करे । तथा नाना गीत नृत्यादि उत्सव से महापूजा और रात्रिजागरण करे ।
तथा श्रुतज्ञान पुस्तकादि की पूजा
कर्पूरादि से सदा
सुकर है । अरु प्रशस्त वस्त्रादिक से विशेष