Book Title: Jain Tattvadarsha Uttararddha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 363
________________ ३३६ जैनतस्वादर्श तथा जो गोल घर होवे, बहुत कूणेवाला होवे, अथवा एक कूणा, दो कूणा, तीन कूणा होवे, अरु दक्षिणवामी तरफ लंबा होवे, ऐसे घर में न बसे। तथा जिस घर के कवाड स्वयमेव उघड़े अरु भिड़े वो घर सुखकारी नहीं । तथा घर के द्वार के आगे कलशादि चित्राम होवे, तो शुभ है। तथा रंगनी, नाटारंभ, भारत, रामायण का युद्ध, राजाओं का युद्ध, ऋषियों का चरित्र, देवचरित्र, ये चित्राम कराना घर में शुभ नहीं। तथा फलवृक्ष, फूलीवेल, सरस्वती, नव निधान, यज्ञस्तंभ, लक्ष्मीदेवी, कलश, वर्द्धमान, चौदह स्वप्नावलि, ये चित्राम कराना शुभ है। __तथा खजूर, दाडिम, केला, कोहड़ा, बीजोरा, ये जिस घर में ऊगें, उस घर का नाश करते है। वटवृक्ष ऊगे तो लक्ष्मी का नाश करते है । कांटेवाला वृक्ष उगे, तो शत्रु का भय करे । बडे फलवाला वृक्ष उगे, तो संतान का नाश करे। इन वृक्षों का काष्ठ भी वर्जे । तथा कोई शास्त्र ऐसा कहता है कि, घर के पूर्व वटवृक्ष होवे तो अच्छा है। दक्षिण पासे उदंबरवृक्ष शुभ है, पश्चिम भाग में पीपल, उत्तर पासे पिलंखन वृक्ष अच्छा है। तथा घर में पूर्व दिशा में लक्ष्मी का घर करे, अग्निकोण में रसोई करे, दक्षिण दिशा में शयन की जगा करे, नैऋत्य कोण में शस्त्रशाला करे, पश्चिम दिशा में भोजनक्रिया करे, वायुकोण में अन्न संग्रह करे, उत्तर पासे जल रखने का स्थान,

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