Book Title: Jain Tattvadarsha Uttararddha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 371
________________ કષ્ટ जैनतत्वादर्श I से अपनी आत्मा का उद्धार करा है, ऐसा जान लेना । जीर्णचैत्योद्धार करणपूर्वक ही नवीन चैत्य करना योग्य है । इसी वास्ते संप्रति राजाने नवासी हजार जीर्णोद्धार कराये हैं । अरु नवीन जिनमन्दिर तो छत्तीस हजार ही बनवाये हैं । ऐसे ही कुमारपाल राजा तथा वस्तुपालादिकों ने भी नवीन जिनमंदिरों के बनाने की अपेक्षा से नीर्णोद्धार बहुत कराये हैं । तथा जब चैत्य वन जावे, तब शीघ्र ही प्रतिमा विराजमान करनी चाहिये । यदाह श्रीहरिभद्रसूरिः - जिनभवने जिनविवं, कारयितव्यं द्रुतं तु बुद्धिमता । साधिष्ठानं ह्येवं, तद्भवनं वृद्धिमद्भवति ॥ देहरे में कुंडी, कलश, उरसा, प्रदीप, भंडार, बाग, वाडी, गाम, नगर, प्रमुख राजा देवे । जैसे सिद्धराज राजाने, श्रीरैवताचल ऊपर श्रीनेमिनाथ के चैत्य वास्ते बारां गाम दिये थे । तथा जैसे कुमारपाल राजाने वीतभयपाटन के खुदाने से त्रांबापत्र में श्रीउदयनराजा के दिये गाम निकले, सो कबूल करके दिये; तैसे देवे । श्रीजिनमंदिर के बनाने का फल यह है कि, जो यथाशक्ति से अपने धन के अनुसार श्रीजिनवर का भवन करावे, सो देवता जिसकी स्तुति करे, बहुत काल लग आनंदरूप, ऐसा देवविमानादि का परम सुख पावे |

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