Book Title: Jain Tattvadarsha Uttararddha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 377
________________ ३५० जैनतत्त्वादर्श लिखावे । तथा आप वांचे, संवेगी गीतार्थ पासों वंचावे । तथा प्रौढ़ प्रारम्भादि महोत्सव से प्रतिदिन पुस्तक की पूजा बहुमानपूर्वक व्याख्यान करावे । तिन के पढ़नेवालों की वस्त्र अन्नादि से सहायता करे। शास्त्र जो हैं, सो दुखम काल के प्रभाव से बारां वर्ष के दुर्भिक्षकाल में बहुत विच्छेद गये, अरु जो शेष रहे, सो भगवान् नागार्जुन, स्कंदिलाचार्य प्रमुख ने पुस्तकों में लिखे, तब से लिखे हुए शास्त्रों का बहुमान करने लगे। इस वास्ते पुस्तक जरूर लिखाने चाहिये । न्योंकि जो यह विच्छेद हो जायंगे, तो फिर इस क्षेत्र के अनाथ जीवों को कौन ज्ञान देवेगा! इस वास्ते पुस्तकों के ऊपर दुकुलादि वस्त्र बांध के यल से पूजने और रखने चाहिये । शाह पेथड ने सात क्रोड, अरु मंत्री वस्तुपाल ने अठारह क्रोड़ रुपये खरच के ज्ञान के तीन भंडार बनाये। तथा थिरापद्रीय संघपति आमू ने अपनी माता के नाम के तीन क्रोड़ रुपैये से सर्वागमों की प्रति सोने के अक्षरों से लिखवाई, शेष ग्रन्थ स्याही के अक्षरों से लिखवाए। ग्यारहवां पौषधशाला बनाने का द्वार-सो श्रावक प्रमुख के पौषध करने के वास्ते साधारण स्थान पौषधशाला का में पूर्वोक्त घर बनाने की विधि के अनुसार निर्माण बनानी चाहिये । वो शाला समरा के अव. सर में सुसाधु के रहने को भी देवे, तिस

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