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जैन तत्त्वादर्श
सरकार से फते पावे, तब मन में बड़ा आनंदित होवे कि, मैं बड़ा चालाक हूं, मैं ने हाकम को भी घोखा दिया ।
तब
४. संरक्षणानंद रौद्र - परिग्रह - धन, धान्य, बहुत बढ़ावे; पीछे और भी इच्छा करे, कुटुंब के पोषण के वास्ते परिग्रह की वृद्धि करे; बहुत कुबुद्धि करे; जैसे तैसे काम को अंगीकार करे; लोकविरुद्ध, राजविरुद्ध, कुलविरुद्ध, धर्मविरुद्धादि काम की उपेक्षा न करे | ऐसे करते हुए पूर्व पुण्योदय से पाप परिग्रह पावे, घन बहुत हो जावे; मन में बहुत खुशी माने कि इतना धन मैं ने अकेले ने पैदा किया है; ऐसा और कौन होशयार है, जो पैदा कर सके । ऐसा अहंकार करे, अहंकार में मन रहे । रात दिन मन में चिंता रहे कि, मत कभी मेरा धन नष्ट हो जावे । रात को पूरा सोवे भी नहीं, हाट हवेली के ताले टटोलता रहे, सगे पुत्र का भी विश्वास न करे। लोगों को कुबुद्धि सिखावे । ये आर्च अरु रौद्र मिल कर प्रथम अपध्यानानर्थदण्ड के भेद हैं । सो नहीं करने चाहिये ।
अब दूसरा पापकर्मोपदेश अनर्थदण्ड कहते हैं - हरेक अवसर में घर सम्बंधी दाक्षिण्य वर्ज के पापोपदेश करे । जैसे कि तुमारे घर में बछड़े बड़े हो गये हैं, इन को बधिया करके समारो, नाक में नाथ गेरो । घोड़े को चाबुकसवार के सुपुर्द करो वो इस को फेर कर सिखावे । तथा तुमारे क्षेत्र में सूड़ बहुत हो रहा है, उसको काटना तथा जलाना चाहिये ।