Book Title: Jain Tattvadarsha Purvardha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 4
________________ (क) नम्र निवेदन प्रातः स्मरणीय पूज्य गुरुदेव न्यायामोनिधि जैनाचार्य श्री १००८ श्री विजयानन्द सूरीश्वर प्रसिद्ध नाम आत्माराम जी महाराज की गुजरात देश की बड़ोदा राजधानी में [चैत्र शुक्ला प्रतिपदा संवत् १८६३ ] बड़े समारोह से मनाई जाने वाली जन्म शताब्दी के मनाने का अधिकार यद्यपि सब से पहिले पंजाय को था, क्योंकि स्वर्गीय गुरुदेव के उपकारों का सब से अधिक ऋणी पंजाब ही है । इसके अतिरिक्त आप श्री के पुनीत जन्म का प्रसाधारण गौरव भी पंजाब ही को प्राप्त है । यदि सच कहा जाय तो आप के सुविनीत वल्लभ की तरह ही आप को पंजाव वल्लभ था । इसी लिये स्वर्ग लोक को अभिनन्दित फरने से पहिले ही आप ने अपने वल्लभ देश को अपने प्यारे वल्लभ के सुपुर्द कर दिया था । इस से भी पंजाब ही को इस शताब्दि रूप पुण्य यज्ञ के अनुष्ठान में सब से पहिले दीक्षित होने का अधिकार था । परंतु कई एक अनिवार्य कारणों के उपस्थित होने से पंजाब इस गौरवान्वित गुरुभक्ति से वञ्चित रहा, जिस का उसे अत्यन्त खेद है। यदि उस को पूज्य गुरुदेव की शताब्दि मनाने का गौरव प्राप्त होना होता तो आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी महाराज पंजाब. के किसी निकट प्रदेश में अवश्य विराजते होते।

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