Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 16
________________ जैन तत्त्व दर्शन सुणो. || 1 || सुणो. ।। 2 || D. श्री स्तवन संग्रह 1. श्री सीमंधर स्वामी का स्तवन सुणो चंदाजी। सीमंधर परमातम पासे जाजो। मुज विनतडी, प्रेम धरीने एणीपरे तुम संभलावजो || जे त्रण भुवननो नायक छ, जस चोसठ इंद्र पायक छ। नाण-दरिसण जेहने खायक छ। जेनी कंचनवरणी काया छे, जस धोरी लंछन पाया छे, पुंडरीगिणी नगरीनो राया छ। बार पर्षदामांहि बिराजे छ, जस चोत्रीश अतिशय छाजे छे, गुण पांत्रीश वाणीए गाजे छ । भविजनने जे पडिबोहे छे, तुम अधिक शीतल गुण सोहे छे, रुप देखी भविजन मोहे छ। तुम सेवा करवा रसीओ छु, पण भरतमां दूरे वसीओ छु, महामोहरायकर फसीओ छु। पण साहिब चित्तमां धरीओ छे, तुम आणा खडग कर ग्रहीयो छे, तो कांइक मुजथी डरीयो छे। जिन उत्तम पूँठ हवे पूरो, कहे पद्मविजय थाउं शूरो तो वाधे मुज मन अतिनूरो। सुणो. ।। 3॥ सुणो. ।। 4 || सुणो. ।। 5 || सुणो. || 6 || सुणो. ।। 7 || 2. श्री शत्रुजय तीर्थ का स्तवन सिद्धाचलना वासी, विमलाचलना वासी, जिनजी प्यारा, आदिनाथ ने वंदन हमारा........ प्रभुजीनुं मुखडु मलके, नयनों माथी वरसे, अमीरस धारा आदिनाथ. ।। 1 ।। प्रभुजीनुं मुखडु छे मनको मिलाकर, दिल में भक्ति की ज्योत जगाकर, भजले प्रभुने भावे, दुर्गति कदी न आवे, जिनजी प्यारा, आदिनाथ. || 2 ||

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