Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 54
________________ ___जैन तत्त्व दर्शन C. मेरे तप 1. 12 प्रकार के तप तप के मुख्य दो प्रकार हैं : 1. बाह्य तप एवं 2. अभ्यंतर तप | बाह्य तप की परिभाषा: जो तप बाह्य-शरीर द्वारा किये जाते है। ये 6 प्रकार के है: 1. अनशन : भोजन का त्याग | भोजन का त्याग दो प्रकार से होता है। एक त्याग जीवन भर का यानी जीवन भर के भोजन का त्याग वह यावत्कथिक' कहलाता है। ___ जो भोजन का त्याग एक घंटा, दस मिनट, पन्द्रह मिनट, आयंबिल, एकासना, बियासना आदि तपस्या में, खाने के सिवाय का वक्त वह भी अनशन में आता है। नवकारसी करे, उसमें भी सूर्योदय से 48 मिनट तक का अनशन होता है और तीन समय भोजन में भी हमें जिस समय खाना नहीं खाना हो चाहे वह समय मात्र 10-15 मिनट का हो फिर भी अगर हम उस 10-15 मिनट के लिए ही पच्चरखाण लें तो वह अनशन में आता है और वह अनशन कहलाता है। 2. उनोदरि:भूख से कम खाना । अगर हम हर रोज 4 रोटी खाते हैं तो हमें रोटी खानी चाहिए, कहने का मतलब हमें हमारे भूख से कम खाना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा पुरुषों के लिए 32 कवल, स्त्रियों के लिए 28 कवल का आहार कहा है। 3. वृति संक्षेप:खाने-पीने की जितनी वस्तु हो उसमें कोई न कोई चीजों का त्याग करना । जैसे भोजन में अगर 20 चीजें हो तो हमें 20 में से 18-19 ही खाना यानि 1 या 2 अथवा ज्यादा चीजों का भी त्याग कर सकते हैं। 4. रस त्याग :रस का त्याग | रस छ: प्रकार के हैं। दूध, दही, घी, तेल, गुड (गोल) एवं पकवान । इन छ: विगई में से कोई भी एक का त्याग करना अथवा रोटी के साथ सब्जी का त्याग, चावल के साथ दाल का त्याग इस तरह भी हम रस का त्याग कर सकते हैं। 5. काय क्लेश : काया (शरीर) को कष्ट देना । जैसे की बिना चप्पल बाहर जाना | वाहन का इस्तेमाल न करके चलकर एक जगह से दूसरी जगह जाना, पंखा, ए.सी., कूलर, लिफ्ट आदि का उपयोग न करना | इस तरह अपनी काया (शरीर) को कष्ट देना।

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