Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 64
________________ _जैन तत्त्व दर्शन ___16. कहानी विभाग 1. हरिश्चन्द्र को श्मशान में क्यों रहना पड़ा? * * * * * horse पूर्वभव न हरिश्चंद्र राजा न निषि मुनियों को इंटर मानाये थे। पुर्व भव में भी हरिश्चन्द्र और तारा राजा-रानी थे। एक दिन दो मुनिवरों को देखकर रानी कामवश हो गई। उसने दोनों मुनियों को दासी द्वारा बुलवा कर हाव-भाव दिखाने शुरू किये। मेरु की तरह अड़िग मुनियों के सामने उसकी सभी मुरादें निष्फल गयी। उसकी प्रार्थना को ठुकराते हुए मुनिवर ने उसे बहुत समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि, “विष्ठा से भरी हुई आकर्षक अत्तर वाली थैली पर मोहित होना अज्ञानता है। उसी तरह मलमूत्र से भरे मानवीय शरीर पर मोहित होना अज्ञानता है, इत्यादि अनेक तरीके से दोनों मुनियों के द्वारा समझाने पर भी वह तस से मस न हुई। क्योंकि जिसे मोह का नशा चढ़ा हुआ हो, मोह के उल्टे चश्में लगे हुए हो, तो सच्ची बात उसके गले कैसे उतरे? निराश होकर रानी ने छेड़ी हुई नागिन की तरह बदला लेने के लिये हाहाकार मचा दिया। मेरे शील के ऊपर दुराचारी साधुओं ने आक्रमण किया है। बचाओ! बचाओ! सिपाहियों ने मुनियों को पकड़कर राजा के सामने उन्हें खड़े किये। राजा की आँखों में से अग्नि की ज्वाला बरसने लगी। अरे....रे... ऐसी नीचवृत्तिवाले ये साधु हैं। जाओं.... कोडे. (हन्टर) मार-मार कर इनको अधमरा बना दो... और कारागार में डाल दो। इनको रोज के 100-100 कोडे मारना।

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