Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 65
________________ जैन तत्त्व दर्शन एक महीने के बाद राजा को वस्तु स्थिति मालूम पड़ने पर उन्हें जेल से मुक्त कर दिया। राजा व रानी ने क्षमा माँगी। किंतु आलोचना-प्रायश्चित नहीं लिया। अतः हरिश्चन्द्र राजा के भव में उन्हें चंडाल के घर पर 12 साल तक श्मशान में काम करने के लिए रहना पड़ा तथा तारा रानी पर राक्षसी होने का कलंक आया व पुत्र रोहित का वियोग हुआ। ये सारे कष्ट उन्हें पूर्वभव में किए हुए पापों की आलोचना-प्रायश्चित्त न लेने से आए। यह जानकर हमें भी आलोचना-प्रायश्चित्त लेना चाहिए। 2. आलोचना न लेने से दुःखी बने श्रीपाल राजा श्रीपालजी पूर्वभव में श्रीकान्त नाम के राजा थे। एक दिन नगर में मलिन वस्त्र वाले मुनिश्री को देखकर तिरस्कार भरे शब्दों में फटकारते हुए उन्होंने मुनि से कहा कि तुम कोढ़ी हो। __दूसरी बार श्रीकान्त राजा ने नदी के किनारे कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े हुए मुनि के प्रति तिरस्कार करते हुए उनको पानी में डुबकी लगवाई। मुनि ने उपसर्ग समता से सहन कर लिया, परंतु श्रीकांत का कर्म बंध हो गया। श्रीकांत राजा ने इन दोनों पापों की आलोचना न ली, इसलिये दूसरे भव में श्रीपालजी को कोढ़ रोग हुआ। उस कर्म को भुगतने के बाद पानी में डुबाने का कर्म उदय में आने पर धवल सेठ ने उन्हें समुद्र में गिराया, परन्तु वहाँ पर नवपद के ध्यान के प्रताप से मगरमच्छ की पीठ पर गिरने के कारण बच गये । प्रायश्चित्त न लेने के फल बहुत दुःखदायी होते है। अतः छोटे-से पाप की भी आलोचना भावपूर्वक लेनी चाहिए। की थी। लों की चोरी 3. चोरी की सजा व 'देवकी माता वसुदेव की पत्नी देवकी के जीव ने पूर्व भव में सौतन के सात रत्न चुराये थे। मगर जब सौतन आकुल-व्याकुल हुई, तब दया से आर्द्र होकर उसने एक रत्न किसी तरह वापस दे दिया | इस चोरी की आलोचना देवकी के जीव ने नहीं ली। उसके बाद वही जीव आगे जाकर देवकी बना। ___ भद्दिल ग्राम में नागिल सेठ रहते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम सुलसा था। 'उससे मरे हुए बच्चे ही जन्मेंगे, ‘ऐसी भविष्यवाणी सुनकर, उसने एक हरिनैगमेषी देव की साधना की। देव ने उसे स्पष्ट कहा कि तेरा पुण्य नहीं है कि तुझसे जीवित संतान जन्म पाये, इसलिए मैं अपनी कान्ति से दूसरे के संतान तुझे अर्पण करूँगा । तू उन्हें बड़ा करके खुद को पुत्रवती समझना । 'मामा नहीं तो काना मामा' इस कहावत के अनुसार सुलसा ने देव की बात को स्वीकार कर लिया। जीव ने पूर्व भव देवकी के जी रनवापस दियाथा

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