Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 52
________________ जैन तत्त्व दर्शन सिधारे। उस प्रसंग की स्मृति में 6 कोस की फेरी दी जाती है, जो कि शत्रुजय पर होने वाले वार्षिक मेलों में से एक है, जिसे फागन की फेरी का मेला कहा जाता है। अन्य मेले कार्तिक पूर्णिमा, चैत्र पूर्णिमा, अक्षय तृतीया व वैशाख वद छ? (दादा के मुख्य जिनालय के प्रतिष्ठा दिवस) को लगते हैं। इनके अलावा यहां प्रायः यात्री समूहों का आना जाना लगा रहता है, जिससे यहां सदैव मेलासा वातावरण रहता है। (चातुर्मास के चार महिने - आषाढ़ सुद 15 से कार्तिक सुद 14 तक ऊपर यात्रा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से संघ आज्ञा-भंग का दोष लगता है।) "गिरिवर दर्शन विरला पावे, पूर्व संचित कर्म खपावे" जिस शाश्वत तीर्थ की महिमा श्री सीमंधर परमात्मा महाविदेह क्षेत्र में कहते हैं वह तीर्थ है - “सिद्धाचलजी" - यह सभी तीर्थों का सिरमौर है। पृथ्वी तल पर, पहाड़ियों में चित्ताकर्षक मंदिरों के समूह को अम्बर में गंगा एवं सफेदी में हिमाचल के बर्फ की उपमा से विभूषित किया गया है। संपूर्ण पहाड़ पर सैकड़ों शिखर बद्ध मंदिरों का दृश्य विभिन्न सौन्दर्यात्मक कलाओं से युक्त है। साथ ही कई जैन साधु तथा महात्मा पुरूषों ने यहाँ पर महानिर्वाण प्राप्त किया है। अपने मन के क्रोध, द्वेष, मोह, माया, लोभ आदि विकार रूपी शत्रु पर उन्होंने यहाँ पर विजय प्राप्त की, इसलिए इस तीर्थ का नाम शत्रुजय है। इस तीर्थ के कण कण में समाधि और कैवल्य की आभा हैं। ___ तलेटी से रामपोल तक 3745 पगथिए हैं। ऊँचाई 2000 फुट व चढाई 4 किलोमीटर है। गिरिराज पर बडी ढूंक में 13036 प्रतिमाजी विराजमान हैं, व नव ढूंक में 11474 प्रतिमाजी हैं। नव ढूंक में 124 मंदिरजी हैं एवं नवढूंक में कुल 8961 पगलियांजी हैं। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि सिद्धाचल पर जब 16वें उद्धार के समय अंजनशलाका 2000 आचार्यों द्वारा हुई तब इन्हीं मूलनायक आदिश्वरजी (दादा साहबे) की प्रतिमा ने सात बार श्वासोश्वास लिए थे। इनके दर्शन वंदन पूजन का प्रभाव आज भी हम सभी जानते हैं।

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