Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 24
________________ जैन तत्त्व दर्शन (7) नैवेद्य पूजा नैवेद्य पूजा का रहस्य इस पूजा के द्वारा अनंतकाल की मेरी आहार की संज्ञाओं का नाश हो और अनाहारी पद की प्राप्ति हो। अणहारी पद में कर्या, विग्गह गईय अनंत दूर करी ते दीजिये, अणहारी शिव संत || ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरूषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय नैवेद्यं यजामहे स्वाहा। भावना हे प्रभु ! चौरासी लाख योनि के परिभ्रमण में भटकते भटकते जब जब में एक जन्म पूर्ण कर दूसरे जन्म को प्राप्त करता था, एक शरीर को त्याग कर अन्य शरीर को प्राप्त करता था तब बीच बीच में एकाध दो समय मैं अनाहारी रहा हुँ। अन्यथा इस भवचक्र में मैने बेहिसाब खाया है। पल पल आहार की लालसा मुझे सताती है। क्या भक्ष्य है और क्या अभक्ष्य, कब खाना चाहिए और कब नहीं ऐसे विचार किए बिना कुछ भी, कभी भी मैं खाते ही रहा हूँ। तथापिहे प्रभु! मेरी क्षुधा यथावत है। मेरी आहार संज्ञा यथावत है। हे प्रभु! अब ऐसी कृपा बरसाइये कि मेरी आहार संज्ञा और स्वादलालसा का एक झटके से नाश हो जावे | बस, इसी एक मनोकामना से आज आपके समक्ष यह नैवेद्य ले कर आया हुँ। मुझे भी आपजैसा ही बिना स्वाद का, पर रसमय बना दो, हे प्रभु!

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