Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 37
________________ जैन तत्त्व दर्शन 8. दिनचर्या 2. ऊठ करके माता-पिता के चरण-स्पर्श करना । फिर प्रतिक्रमण, वह नहीं हो सके तो सामायिक करनी । यदि वह भी नहीं हो सके तो 'सकल तीर्थ' सूत्र बोलकर सर्व तीर्थों को वंदन करें और भरहेसर सज्झाय बोलकर महान आत्माओं को याद करें। रात्रि के पापों के लिये मिच्छामि दुक्कड़म् कहना । बाद में कम-से-कम नवकारशी पच्चक्रवाण धारें। पर्व तिथि हो तब बियासणा, एकासणा, आयंबिल आदि शक्ति अनुसार धारें । श्रावकों की दिनचर्या 1. सवेरे जल्दी जागना। जागते ही 'नमो अरिहंताणं' बोलना । बिस्तर छोड़कर नीचे बैठकर शांत चित्त से 7-8 नवकार गिनना । फिर विचार करना कि 'मैं कौन हूँ?' मैं जैन मनुष्य दूसरे जीवों से बहुत ज्यादा विकसित हुँ, इसलिये मुझे शुभ कार्य रूप धर्म ही करना चाहिये । उसके लिये अभी अच्छा अवसर है। 35

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