Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 22
________________ जैन तत्त्व दर्शन (5) दीपक पूजा दीपक पूजा का रहस्य इस पूजा द्वारा मेरी आत्मा के अज्ञान रूपी अंधकार का नाश हो और ज्ञानरूपी दीपक का प्रकाश हो। दव्य दीप सुविवेकथी, करतां दुःख होय फोक भाव प्रदीप प्रगट हुए, भासित लोका लोक || ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं यजामहे स्वाहा। भावना हे प्रभु! आप श्री तो स्वयं विश्वदीपक हो। फिर भी आप के सम्मुख यह द्रव्यदीपक प्रज्ज्वलित कर मैं अपने हृदय में भाव दीपक प्रज्वलित करना चाहता हूँ। इस भावदीपक की ज्योति का स्पर्श मेरी आत्मा को करा दो। मेरी आत्मा में भी भावदीपक की भव्य ज्योति प्रज्ज्वलित कर दो। आप को प्राप्त हुए केवलज्ञान का अनंत प्रकाशपुंज मुझे भी प्राप्त हो ऐसी प्रार्थना करता हूँ। आप के मंदिर में उजाला करके हे प्रभु! मैं इतना ही चाहता हुँ कि मेरे हृदयमंदिर में भी उजाला फैले। ऐसा उजाला कि जो अनादिकाल से व्याप्त अंधकार का पल भर में नाश कर दे और उस उजाले में समस्त लोकाकाशतथा अलोकाकाश दैदीप्यमान हो जावे। कम से कम, हे प्रभु, अच्छे-बुरे का स्पष्ट विवेक रख सकु उतना प्रकाश तो आज फैला ही दीजिए मेरे अंतःकरण में।

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