Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ जैन तत्त्व दर्शन 2. काव्य संग्रह A. प्रार्थना हे शारदे माँ, हे शारदे माँ, अज्ञानता से हमे तार दे माँ... तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे, हर शब्द तेरे, हर गीत तुझसे, हम हैं अकेले, हम हैं अधूरे, तेरी शरण में, हमे प्यार दे माँ हे शारदे माँ.. || 1 || मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी, संतों की भाषा, आगमों की वाणी, हम भी तो समझे, हम भी तो जाने, _ विद्या का हमको अधिकार दे माँ हे शारदे माँ.. || 2 || तू श्वेतवर्णी, कमल पे विराजे, - हाथों में वीणा, मुकुट सर पे छाजे, मन से हमारे, मिटा दे अंधेरे, हम को उजालों का परिवार दे माँ हे शारदे माँ.. || 1 || B. प्रभु स्तुतियाँ अद्य मे सफलं जन्म, अद्य मे सफला क्रिया, अद्य मे सफलं गात्रं, जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।। **** हे देव ! तारा दिलमां, वात्सल्यनां झरणां भर्या, हे नाथ! तारां नयनमां. करुणा तणा अमतभर्या । वीतराग तारी मीठी-मीठी, वाणी मां जादू भर्या, तेथी ज तारा चरण मां बालक बनी आवी चढया ।। **** में दान तो दीधुं नहीं ने शियल पण पाल्युं नहीं, तप थी दमी काया नहीं, शुभभाव पण भाव्यों नहीं। ए चार भेदे धर्ममाथी कांई पण प्रभु नव कर्यु, मारुं भ्रमण भवसागरे निष्फल गयुं निष्फल गयुं ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76