Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai
View full book text
________________
जैन तत्त्व दर्शन
हुं क्रोध अग्निथी बल्यो, वली लोभ सर्प डश्यो मने, गल्यो मानरुपी अजगरे, हुं केम करी ध्यावं तने ?
मन मारुं मायाजालमां मोहन ! महा मुंझाय छे, चडी चार चोरो-हाथमां चेतन घणो चगदाय छे ||
जिने भक्ति र्जिने भक्ति, जिने भक्ति दिने दिने, सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु, सदा मेऽस्तु भवे भवे ||
भवो भव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मांगु छु देवाधिदेवा सामु जुओने सेवक जाणी ऐवी उदयरत्ननी वाणी
C. श्री चैत्यवंदन संग्रह 1. श्री सीमंधर स्वामी का चैत्यवंदन श्री सीमंधर वीतराग, त्रिभुवन तुमे उपकारी, श्री श्रेयांस पिता कुले, बहु शोभा तुमारी || 1 || धन्य धन्य माता सत्यकी, जेणे जायो जयकारी, वृषभलंछने बिराजमान, वंदे नर नारी।। 2 ||
धनुष पांचशे देहडी ए, सोहिए सोवनवान, कीर्ति विजय उवज्झायनो, विनय धरे तुम ध्यान ।। 3 ।।
2. श्री शचुंजय तीर्थ का चैत्यवंदन
श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे। भाव धरीने जे चढे, तेने भवपार उतारे|| 1 ||
अनंत सिद्धनो एह ठाम, सकल तीरथनो राय। पूर्व नवाणुं रिखवदेव, ज्यां ठविआ प्रभु पाय || 2 ||
सूरजकुंड सोहामणो, कवडजक्ष अभिराम | नाभिराया कुलमंडणो, जिनवर करुं प्रणाम || 3 ||

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76