Book Title: Jain Stotra Sanchayasya Part 1 2 3
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Ramanlal Jaychand Shah Kapadwanj

View full book text
Previous | Next

Page 158
________________ त्रिदशतरङ्गिणी निनः श्रीमान् वीरस्त्रिभुवनहितो धर्मचक्री परं मे, वितन्याद् भद्रौवं सुरनरपतिश्रेणिसेव्यांहिपद्मः / श्रियोऽनन्ता दत्ते सकलजगतामध्यभीष्टाः सदोद्यत् परानन्दा धर्माक्षयनिधिरयं सेव्यमानो यदीयः / 8 / / (मेघविस्फूर्जिता) स्तुतिमिति तनुते जिनेन्द्र ! यस्ते, मघवमहामुनिसुन्दरस्तुतांहे। म भवति गुणसम्पदा समस्ते, फलमिति तद्वितराऽचिरान् ममापि // 9 // इति युगप्रधानावतारतपागच्छाधिराज-परमपूज्य श्रीदेवसुन्दरसूरिगुरुगणमहिमाणवानुगामिन्यां तद्विनेयश्रीमुनिसुन्दरसूरिगणिहृदयहिमवदवतीर्णश्रीगुरुप्रभावपद्महदप्रभवायां श्रीपर्युषणामहापर्वविज्ञप्तित्रिदशतरङ्गिण्यां जयथ्यङ्कायां प्रथमे निनादिस्तोत्ररत्नकोशापरनामनि नमस्कारमङ्गलस्रोतसि वर्तमानचतुर्विंशतिश्रीजिनस्तवचतुर्विशिकाह्वमहाहूदे श्रीवर्द्धमानस्यापश्चिमतीर्थपतेः सम्प्रति प्रवर्त्तमानश्रुतधर्मतीर्थप्रवृत्तिद्वारस्तुतिरूपः स्तोत्ररत्न नामा पञ्चविंशो मूलतश्च तरङ्गः // 25 // // 2 // श्री वीरस्तवः जय सिरिजिणवर ! तिहुअणजणमणवंछिअसुहत्थकप्पतरू / सिरिवद्धमाणसामिअ ! होस पहू मम तुमं निच्चं भविआण थुणिअचलणो, सामित्तं देसि तिहुअणस्सावि / कप्पतरुस्स छिअ-दाणो एसो तुह सहावो सयलाओ हुँति रिद्धी, भद्दकरा गहनिमित्त-सउगसरा / विलसति नाणदसण-चरणा तुह पयपसाएण दसणनाणचरित्ते, दाउं जह गोयमाइगणवइणो / सिवसुहलच्छीसहिआ, विहिआ तुह नाह ! कुणम् ममं इअ सुरनरनाहमहा-मुणि सुंदर संथवारिहो वीरो / सामी कुणसु पसायं, नियपयसुहदाणओ अइरा // 2 // // 4 // // 6 // "Aho Shrut Gyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254