Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03 Author(s): Bhairodan Sethiya Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner View full book textPage 7
________________ होई शेठियाजी महा परिश्रम द्वारा अनेक विद्वान् साधुओं अने अनेक सूत्रो,भाष्यो, टीका अने चूवाला मागमो नो आश्रय लई बने तेटलावधु बोलोसंग्रहवानो श्रम सेव्यो होइ पा गन्थ मात्र ६ भने ७ अम बे ज बोल मां४५. पृष्ठ मां पूरो को छ। जैन धर्मनी माहीति मेलववा इछनार या ग्रन्थ न बारीकाइ थी अवलोकन, करे तो ते मोटी ज्ञान सम्पत्ति मेलवी शके। बोलो ने टंकाववान इच्छता स्वरूप पण दश गाव्यु होइ अोछा जिज्ञासु ने पण वांचवानी प्रेरणा थाय छ। परदेशीराजा नाछ प्रश्नो,छ पारा,बौद्ध चार्वाक सांख्यादिछ दर्शनो नुं स्वरूप,मल्लिनाथादि सात जणे साथे दीक्षा लीधेल तेनुं वृत्तांत,सात निन्हव, सप्तभंगी वगेरे भेक पछी ग्रेक अवी. अनेक रसीक अने तात्त्विक बाबतो जाणवानी सहज उत्कंठा थई आवे के। मावा प्रयास नी अनिवार्य आवश्यकता के अने तेथी ज तेनुं गूर्जर भाषा मां अनुवाद करवा मां आवे तो अति जरूर न थे। साथे साथे दरेक धार्मिक पाठशाला मां आ प्रस्थ पाठ्य पुस्तक तरीके चलाववा जेवं छे । एटलं ज नहीं पण अमे मानीए छीये के कोलेज मां भणतां जैन विद्यार्थियों माटेपणा युनीवरसीटी तरफ थी मान्य थाय इच्छवा योग्य छ। बेरुपीया पडतर किमत होवा छता रु. १॥ राखवा मां पाव्यो छे । अने तेनो उपयोग पण भावा प्रकाशन मां ज थवानो के ग्रे जाणी आ ग्रन्थ ने प्रावकार आपता अमनै हर्ष थाय थे। श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय भट्टारक श्रीमज्जैनाचार्यव्याख्यान वाचस्पति विजययतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज साहेब, बागरा - (मारवाड़) बीकानेर निवासी सेठ भैरोदानजी सेठिया का संगृहीत "श्री जैनसिद्धान्त बोल संगह' का प्रथम और द्वितीय भाग हमारे सन्मुख है। प्रथम भाग में नम्बर १ से १ और द्वितीय भाग में ६ और ७ चोलों का संग्रह है। प्रत्येक बोल का संक्षेप में इतनी सुगमता से स्पष्टीकरण किया है कि जिसको आबाल वृद्ध सभी आसानी से समझ सकते है। जैन वाड्मय के तात्त्विक विषय में प्रविष्ट होने और उसके स्थूल रूप को समझने के लिए सेठियाजी का संग्रह बड़ा उपयोगी है । विशेष प्रशंसास्पद बात यह है कि बोलों की सत्यता के लिए गन्थों के स्थान निर्देश कर देने से इस संग्रह का सन्मान और भी अधिक बढ़ गया है। सम्पूर्ण संग्रह प्रकाशित हो जाने पर यह जैन संसार में ही नहीं. सारे भारतवासियों के लिये समादरणीय और शिक्षणीय बनने की शोभा को प्राप्तPage Navigation
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