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जनशिलालेख संग्रह नही बनाया जा सकता। ये लेप जैन मुनियोकी पूरी गणनाका लेया नही समझना चाहिए। __ ४ कन्नड लेखोका जो सार हिन्दीमें दिया गया है उसीके आधार मापसे कोई नयी करपनाएं नहीं करना चाहिए। उनके लिए मूल पाठ और उसके शब्दश अनुवादका अवश्य अवलोकन करना चाहिए ।
यथार्थत ये लेख संग्रह सामान्य जिज्ञासुमोके लिए तो पर्याप्त है। किन्तु विशेप सशोधकोंके लिए तो ये मूल सामग्रीकी और दिग्निसँग मात्र ही करते है।
इस ग्रन्थमालाको अपनी गोदमें लेकर थी शान्तिप्रमादजी व श्रीमती रमारानीजीने न केवल समाजके एक अप्रणी हितपी सेठ माणिकचन्द्रजॉकी स्मृतिको रक्षा की है व ग्रन्थमालाकं जन्मदाता ५० नाथूरामजी प्रेमीको भावनाको सम्मान दिया है किन्तु जैन साहित्यकी रक्षा व जैन इतिहामक नवनिर्माण कार्यमें बडी महत्त्वपूर्ण सेवा की है जिसके लिए ममाज सदैव उनका ऋणी रहेगा।
-ही ला जन -आ ने उपाध्य (प्रधान सम्पादक)